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सुशील मेहता
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सुशील मेहता
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18 घंटे पहले
लाल बहादुर शास्त्री जयंती लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द, सोवियत संघ रूस), भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया। जवाहर नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया। उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी। ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया। लाल बहादुर शास्त्री जयंती लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द, सोवियत संघ रूस), भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया। जवाहर नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया। उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी। ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया। #शत शत नमन
सुशील मेहता
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18 घंटे पहले
माधवाचार्य जयंती अश्विन शुक्ल पक्ष की मध्वाचार्य दशमी तिथि को व्यापक रूप से श्री मध्व जयंती या मध्वाचार्य जयंती के रूप में जाना जाता है। श्री मध्वाचार्य का जन्म विजय दशमी के शुभ दिन पर हुआ था, जिसे दशहरा भी कहा जाता है। श्री मध्वाचार्य को उनके बचपन के दौरान वासुदेव नाम से जाना जाता था, पिता ने उन्हें वासुदेव नाम दिया। उनका जन्म कर्नाटक राज्य में मैंगलोर के पास उडुपी के मंदिर शहर से लगभग 10 किमी दूर एक छोटे से गाँव में 1238 ईस्वी मे हुआ था, जिसे वर्तमान में पजाका क्षेत्र कहा जाता है। उनका जन्म तुलु ब्राह्मणों के परिवार में हुआ था और वह मध्यगेह भट्ट के पुत्र थे और इनकी माता वेदवती थी। वेदवती एक संयमी महिला थीं। माधव को वायु देवता की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है। मध्वाचार्य ने शारीरिक गतिविधियों और मैदानी खेलों में खुद को साबित किया था। वह दौड़-कूद कर सकते थे और तैर सकते थे, तो लोगों ने उन्हें उपनाम भीम दिया। माधव ने वेदों और वेदांगों का अध्ययन किया और उनमें ज्ञानी निकला, इसलिए मध्व को पूर्ण प्रज्ञा के नाम से जाना जाता था। वहीं वेदांत में पारंगत हो जाने पर इन्हें आनन्दतीर्थ नाम दिया गया और मठाधीश बनाया गया। बहुत छोटी आयु में ही उन्हें संपूर्ण विधाओं का ज्ञान प्राप्त हो गया था। इसके बात इन्होने सन्यास ग्रहण करने की इच्छा अपने माता-पिता के सम्मुख प्रकट की।मध्वाचार्य ने अपने 11वें वर्ष में संन्यास ग्रहण किया। इन्होंने अच्युत प्रकाशाचार्य को अपना गुरु बनाया और उनसे दीक्षा ग्रहण की। अच्युत प्रकाशाचार्य ने पाया कि वेदांत और विभिन्न पवित्र लेखों के बारे में सभी जानकारी के साथ मध्व एक शानदार संन्यासी थे। उन्होंने मठ के शीर्ष के रूप में मध्व को रखा, जिसके बाद मध्व को अब आनंद तीर्थ का नाम मिला। इनकी विद्वता को देखते हुए पूरे दक्षिण भारत में इन्हें पहचान मिली।मध्वाचार्य को वायु देवता का तीसरा अवतार माना गया है, वायु देवता का पहला अवतार हनुमान और दूसरा अवतार भीम है। ब्रह्म सूत्र मे लिखे भाष्य के द्वारा भी यह बात स्पष्ट होती है। मध्वाचार्य के अनुसार वह विष्णु और अद्वैतवाद के अनुयायी हैं, जो माध्यम की तरह भक्ति का प्रचार करते हैं।मध्वाचार्य की शिक्षाओं के अनुसार भगवान विष्णु (हरि) सर्वोच्च है और अपनी पत्नी श्री लक्ष्मी के साथ वैकुंठ में निवास करते है। हम जो दुनिया देखते है वह वास्तविक है और अंतर सत्य है। विष्णु ही एकमात्र स्वतंत्र वास्तविकता है। सभी जीवित और निर्जीव प्राणी विष्णु पर निर्भर है। आत्मा और संसार विष्णु पर निर्भर है और विष्णु से अलग है। भक्ति ही मानव की मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है।मध्वाचार्य के अनुसार ब्रह्म विष्णु या नारायण है। ब्रह्म ही परम तत्व है, जिसे परब्रह्म, विष्णु, नारायण, हरि, परमेश्वर, ईश्वर, वासुदेव, परमात्मा आदि नामों से जाना जाता है। वह चैतन्य स्वरूप में स्थापित है परंतु निर्गुण नहीं है। वह जगत का पालनहार करने वाला है। ब्रहम अपनी इच्छा अनुसार ही जगत की रचना करता है। जीव और जगत् ब्रह्म के अधीन ही है, अत: वह स्वतंत्र है, परंतु जीव और जगत् अस्वतंत्र है।इनके सिद्धांत के अनुसार विष्णु ही उत्पन्न करने वाला, संहार नियमन, ज्ञान आवरण, बन्ध तथा मोक्ष के कर्ता है। विष्णु की शक्ति लक्ष्मी है और वह भी भगवान की भान्ति ही स्वतंत्र है। लक्ष्मी जी को दिव्य विग्रहधारिणी होने के कारण अक्षरा कहा गया है।माधवाचार्य के अनुसार जीव ब्रह्म से अलग है, परंतु जीव के भीतर भी सत्, चित् तथा आनन्द का निवास है और यह सब जीव को ब्रह्म से ही प्राप्त है। ब्रह्म सदा स्वतंत्र है और जीव ब्रह्म के अधीन है। संसार में प्रत्येक जीव अपना अलग अस्तित्व बनाए रखता है। जीवो को भी ऊंच-नीच के आधार पर अलग-अलग श्रेणी में रखा गया है। सबसे ऊंची श्रेणी में देवता आते है उसके बाद मनुष्य को रखा गया है और अंतिम श्रेणी में अदम जीव जैसे दैत्य, राक्षस, पिशाच, आदि आते है। #शुभ कामनाएँ 🙏
सुशील मेहता
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18 घंटे पहले
विजय दशमी दशहरा (विजयादशमी की ) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा = दशहोरा = दसवीं तिथि)। लंका में भगवान श्रीराम के हाथों रावण का वध होने के बाद से ही इसे मनाने की परंपरा चली आ रही है। वहीं इस दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का संहार भी किया था, इसलिए भी इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शस्त्रों की भी विधी विधान से पूजा की जाती है। इस दिन लोग शस्त्र-पूजा करते हैं और नया कार्य प्रारम्भ करते हैं (जैसे अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि)। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें विजय मिलती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है। #शुभ कामनाएँ 🙏
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