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Rajesh Sharma
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Rajesh Sharma
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3 महीने पहले
"कभी माँ की फिक्र… तो कभी पापा की डाँट में छिपा प्यार… जिनके फोन पर आज भी 'माँ' और 'पापा' के कॉल आते हैं, वो सच में इस दुनिया के सबसे भाग्यशाली लोग हैं। क्योंकि माँ-बाप ही वो रिश्ता हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के हमेशा साथ देते हैं।" ❤️ माँ-पापा हैं, तभी तो ये घर है… वरना ये सिर्फ चार दीवारें हैं। ❤️ Ma #माँपापा #EmotionalPost #ParentsLove #बापपेज #RespectParents #LuckyOnes #HeartTouching #ParentingLove #ma
Rajesh Sharma
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3 महीने पहले
#jay jagannath swami 🙏❤️🙏⭕‼️⭕ ॐज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार होकर एकांतवास में चले जाते हैं। इसे अनासरा या ज्वर लीला कहा जाता है। इस दौरान मंदिर के पट बंद रहते हैं और केवल दायित्वगण ही भगवान की सेवा में रहते हैं। यह परंपरा भगवान जगन्नाथ के भक्त माधव दास से जुड़ी है। एक बार माधव दास बहुत बीमार थे और भगवान जगन्नाथ ने स्वयं उनकी सेवा कर रहें थे यह बात भक्त माधव दास समझ गए उनकी सेवा प्रभु हीं कर रहें हैं फिर भक्त माधव दास ने प्रभु से कहा आप मेरी सेवा कर रहें हैं यह ठीक नहीं हैं आप तो भगवान हैं मुझे ठीक क्यूँ नहीं कर देते जो आप मेरे लिए कष्ट सह रहें हैं भगवान ने कहा कि तुम्हारे भाग्य में 15 दिन की बीमारी और बची है 15 दिन में ठीक हो जाओगे लेकिन माधव दास ठीक करने की हठ करने लगे प्रभु ने बहुत समझाया लेकिन माधव दास नहीं माने तब प्रभु ने माधव दास को तो ठीक कर दिए लेकीन अपने भक्त की बीमारी को अपने ऊपर ले लिए क्यूंकि कर्म के फल में परमात्मा भी हस्तक्षेप नहीं करते यहीं विधि का विधान हैं । तभी से, हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार होकर एकांतवास में चले जाते हैं अपने प्रिय भक्त की पीड़ा
Rajesh Sharma
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3 महीने पहले
024 नाली का मेंढक एक संत, एक सेठ के पास आए। सेठ ने उनकी बड़ी सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर, संत ने कहा- अगर आप चाहें तो आपको भगवान से मिलवा दूँ? सेठ ने कहा- महाराज! मैं भगवान से मिलना तो चाहता हूँ, पर #story अभी मेरा बेटा छोटा है। वह कुछ बड़ा हो जाए तब मैं चलूँगा। बहुत समय के बाद संत फिर आए, बोले- अब तो आपका बेटा बड़ा हो गया है। अब चलें? सेठ- महाराज! उसकी सगाई हो गई है। उसका विवाह हो जाता, घर में बहू आ जाती, तब मैं चल पड़ता। संत तीन साल बाद फिर आए। बहू आँगन में घूम रही थी। संत बोले- सेठ जी! अब चलें? सेठ- महाराज! मेरी बहू को बालक होने वाला है। मेरे मन में कामना रह जाएगी कि मैंने पोते का मुँह नहीं देखा। एक बार पोता हो जाए, तब चलेंगे। संत पुनः आए तब तक सेठ की मृत्यु हो चुकी थी। ध्यान लगाकर देखा तो वह सेठ बैल बना वहीं सामान ढ़ो रहा था। संत बैल के कान में बोले- अब तो आप बैल हो गए, अब भी भगवान से मिल लें। बैल- मैं इस दुकान का बहुत काम कर देता हूँ। मैं न रहूँगा तो मेरा लड़का कोई और बैल रखेगा। वह खाएगा ज्यादा और काम कम करेगा। इसका नुकसान हो जाएगा। संत फिर आए तब तक बैल भी मर गया था। देखा कि वह कुत्ता बनकर दरवाजे पर बैठा था। संत ने कुत्ते से कहा- अब तो आप कुत्ता हो गए, अब तो भगवान से मिलने चलो। कुत्ता बोला- महाराज! आप देखते नहीं कि मेरी बहू कितना सोना पहनती है, अगर कोई चोर आया तो मैं भौंक कर भगा दूँगा। मेरे बिना कौन इनकी रक्षा करेगा? संत चले गए। अगली बार कुत्ता भी मर गया था और गंदे नाले पर मेंढक बने टर्र टर्र कर रहा था। संत को बड़ी दया आई, बोले- सेठ जी अब तो आप की दुर्गति हो गई। और कितना गिरोगे? अब भी चल पड़ो। मेंढक क्रोध से बोला- अरे महाराज! मैं यहाँ बैठकर, अपने नाती पोतों को देखकर प्रसन्न हो जाता हूँ। और भी तो लोग हैं दुनिया में, आपको मैं ही मिला हूँ भगवान से मिलवाने के लिए? जाओ महाराज, किसी और को ले जाओ। मुझे माफ करो। लोकेशानन्द कहता है कि संत तो कृपालु हैं, बार बार प्रयास करते हैं। पर उस सेठ की ही तरह, दुनियावाले भगवान से मिलने की बात तो बहुत करते हैं, पर मिलना नहीं चाहते।
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