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Gopal
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18 घंटे पहले
🚨 भारत को मिली बड़ी उपलब्धि! 🚨 अंडमान के तट से सिर्फ़ 17 किलोमीटर दूर समुद्र की गहराई में गैस का विशाल भंडार मिला है। यह खोज सिर्फ़ ऊर्जा के नए स्रोत तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है। 🌍🔥 विशेषज्ञों का मानना है कि यह भंडार आने वाले समय में भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूती देगा और विदेशी निर्भरता कम करेगा। यह खोज देश की अर्थव्यवस्था के लिए गेम चेंजर बन सकती है #Andaman #NaturalGas #IndiaRising #EnergySecurity #GameChanger #📢 ताज़ा खबर 🗞️ #🌐 राष्ट्रीय अपडेट #📰 बिहार अपडेट #📈 बिजनेस अपडेट
Gopal
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4 दिन पहले
भारत की न्याय व्यवस्था की विडंबना को समझाने के लिए दो उदाहरण काफी हैं। पहला मामला न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से जुड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनके आवास से नोटों का जला हुआ ढेर बरामद हुआ, लेकिन इसके बावजूद उनके विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई और वे फिलहाल हाई कोर्ट में न्यायाधीश पद पर आसीन हैं। न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ जब ऐसे गंभीर आरोप लगते हैं और फिर भी व्यवस्था मौन रहती है, तो यह आम आदमी के मन में न्याय प्रणाली के प्रति अविश्वास पैदा करता है। न्यायपालिका लोकतंत्र का स्तंभ मानी जाती है, लेकिन जब उसके भीतर ही पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठते हैं तो पूरा तंत्र कमजोर होता है। दूसरी ओर, एक साधारण नागरिक जगेश्वर प्रसाद अवस्थी की कहानी है। उन पर केवल सौ रुपये की रिश्वत लेने का झूठा आरोप लगाया गया था। इस मामूली आरोप में उन्हें न्याय पाने के लिए पूरे 39 साल तक इंतजार करना पड़ा। तीन दशक से अधिक का यह इंतजार किसी भी व्यक्ति के जीवन के सबसे कीमती समय को छीन लेने जैसा है। जब अदालत ने अंततः उन्हें बरी किया, तब तक उनकी जवानी बीत चुकी थी और जीवन का एक बड़ा हिस्सा निरर्थक प्रतीक्षा में बीत गया। सोचिए, मात्र सौ रुपये की रिश्वत का आरोप साबित करने या न करने में भारतीय न्याय व्यवस्था को चार दशक लग गए। यह केवल एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे तंत्र का आइना है। इन दोनों उदाहरणों को एक साथ देखने पर साफ होता है कि जहां बड़े और प्रभावशाली पद पर बैठे लोगों के मामले को दबा दिया जाता है, वहीं आम नागरिक को मामूली आरोप में जिंदगी बर्बाद कर दी जाती है। यह तुलना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या न्याय सबके लिए समान है या फिर ताकत और पद ही इसका निर्धारण करते हैं। यशवंत वर्मा और जगेश्वर प्रसाद अवस्थी के ये दो मामले हमारी न्याय व्यवस्था की जटिलता, असमानता और धीमी गति के सबसे स्पष्ट उदाहरण हैं। यह हमें मजबूर करता है कि हम इस व्यवस्था में सुधार की मांग करें ताकि भविष्य में किसी निर्दोष को इतना लंबा इंतजार न करना पड़े और किसी प्रभावशाली को कानून से ऊपर न माना जाए । #😜पॉलिटिकल मीम्स😅 #📢 ताज़ा खबर 🗞️ #🔴 क्राइम अपडेट #✍️ जीवन में बदलाव #☝आज का ज्ञान
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