उज्जवल राणा , एक निम्न मध्यमवर्गीय किसान परिवार का वह बेटा, जिसके सपनों में किताबों की खुशबू थी और आँखों में एक बेहतर भविष्य की उम्मीद। परिवार ने उसे पढ़ते-लिखते देखने के अरमान बुने थे, लेकिन वह उस व्यवस्था की बलि चढ़ गया जिसे हमारे समाज में सबसे पवित्र पेशा कहा जाता है ....... शिक्षा।
उन लोगों ने, जिनका दर्जा इस देश में “भगवान से भी बड़ा” माना जाता है, उसे इतना हताश और निराश कर दिया कि वह आत्मदाह जैसा कदम उठाने को मजबूर हो गया।
बुढ़ाना के डी.ए.वी. कॉलेज का छात्र उज्जवल राणा, कॉलेज प्रबंधन और प्राचार्य की व्यावसायिक सोच, असंवेदनशीलता और शोषण से इस हद तक टूट गया कि उसने अपनी जान दे दी।
उसका और उसके परिवार का अपराध केवल इतना था कि वे फीस के सात हजार रुपये अतिरिक्त की व्यवस्था नहीं कर पाए।
सरकार और प्रशासन पर दोष डालना आसान है, लेकिन इस त्रासदी की असली जड़ हमारे समाज की वह मानसिकता है, जिसने शिक्षा को सेवा नहीं, व्यवसाय बना दिया है।
उज्जवल की मौत केवल एक विद्यार्थी की नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक संवेदनहीन समाज की हार है। #✔️राष्ट्रीय लोक दल#🏆खेल जगत की अपडेट##Jaatland##Yogi Adityanath#meerut