*एक मुस्लिम व्यापारी का बयान*
*आज मेरी बात राजनगर (गाज़ियाबाद) सैक्टर 10 की मार्केट में एक मुस्लिम व्यापारी (फल विक्रेता) से उसी की दुकान पर हुई। मैंने उससे समुदाय विशेष स्तर पर अपने दुकानों पर अपना नाम व जाति लिखने के आदेश का कोई विरोध न करने का कारण जानना चाहा। उसका जबाब सुनकर मैं बहुत अशांत हो गया और मेरे दिमाग़ की सारी बत्तियां जल गई।*
उसने मुझे बताया कि लाला जी क्या फर्क पड़ता है नाम लिखने से। हिंदू और सिक्ख तो हमेशा से ही उन लोगों का साथ देते हैं जो उनके खिलाफ लड़ने के लिए उत्सुक रहते हैं।
*अब हमारे ख्वाजा मोइद्दीन चिश्ती साहब को ही ले लो, उन्होंने पृथ्वीराज की बेटियों का सरेआम बलात्कार कराया और आज हिंदू उनकी मजार को चूमने को ही लालायित रहते हैं।*
अभी राममंदिर प्रकरण को ही लें, यदि तुम हिन्दू ही राममंदिर के विरोध में खड़े नहीं होते तो क्या किसी मुस्लिम की हिम्मत थी जो बाबरी मस्जिद के पक्ष में खड़ा हो जाता।
*हमारे पूर्वजों ने सिक्खों के गुरु गोविंद सिंह जी का सरेआम कत्ल किया, उनके बच्चों को दीवार में चुनवा दिया और आज उनकी पुश्तें हमारे तलवे चाटने को तैयार बैठी हैं।*
आपने देखा नहीं कैसे वो लोग अपने गुरुद्वारों में हमें नमाज अदा करवा रहे हैं। रोजा इफ्तारी करा रहे हैं।
*लाला जी तुम्हारे लोग बहुत भुलक्कड़ व लालची हैं। सन् 1984 के दंगों में कांग्रेस ने सिक्खों का कत्लेआम करवाया और आज सिक्ख कांग्रेस के साथ साथ मुसलमानों के तलवे चाटने को ललायित रहते हैं।*
*मुलायम सिंह ने हिंदुओं पर गोलियां चलवाई और आज हिंदू उसके बेटे श्री अखिलेश यादव की चरण वंदना करने को लालायित हैं, उसके लिए दरियां बिछा रहे हैं।*
इसलिए लाला जी कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर हमारी दुकान पर मुसलमान का नेम प्लेट भी लगी हो और हिंदू को वही आम किसी मुस्लिम दुकानदार की दुकान पर ₹5 सस्ता मिल रहा है तो वह मुसलमान से �
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