दुनिया में हर इंसान किसी न किसी चीज़ का भूखा होता है।
कोई पैसा चाहता है, कोई शोहरत, कोई रिश्तों का दिखावा।
लेकिन एक पुरुष…
वो न नींद का भूखा होता है, न आराम का—
वो भूखा होता है सुकून का।
और सुकून उसे तब मिलता है,
जब उसे अपनी पसंदीदा स्त्री की छांव नसीब होती है।
वो एक पल… जब कोई उसे देख कर मुस्कुरा दे,
एक कोमल-सा स्पर्श उसकी हथेली को छू ले,
या थकान से भरे उसके सिर पर किसी का हाथ फिर जाए—
बस, उसी में उसकी सारी दुनिया बस जाती है।
मर्द को क्या चाहिए?
वो बस इतना चाहता है कि
जब वो टूटकर घर लौटे,
तो कोई उसे बिना बोले समझ जाए।
कोई उसकी आंखों की लालिमा पढ़ ले,
उसके चेहरे की झुर्रियों में छुपा दर्द पहचान ले।
और उसे ये एहसास करा दे कि
“मैं हूं… तुम्हारे साथ।”
मर्द एक ऐसी गोद चाहता है
जहां उसकी सारी बेचैनियां घुल जाएं।
एक ऐसी आवाज़,
जो कहे— “चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।”
एक ऐसा कंधा
जहां सिर रखकर वो कुछ देर के लिए दुनिया को भूल सके।
लेकिन अफसोस…
कुछ स्त्रियां इसे समझ ही नहीं पातीं।
उन्हें लगता है कि मर्द सिर्फ शरीर चाहता है।
जबकि सच्चाई ये है कि
मर्द को सिर्फ जिस्म नहीं चाहिए—
उसे चाहिए एहसास, अपनापन और वो छोटी-सी राहत
जो उसके दिल को अंदर तक शांत कर सके।
मर्द रोता नहीं,
लेकिन टूटता जरूर है।
वो कह नहीं पाता,
लेकिन महसूस बहुत करता है।
और जब उसे वो एक औरत मिल जाती है
जो उसकी खामोशी पढ़ ले—
तो समझ लेना,
उसे दुनिया का सबसे कीमती सुकून मिल गया।
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