फॉलो करें
Kanchan Kumar Ray
@kanch120
685
पोस्ट
6,942
फॉलोअर्स
Kanchan Kumar Ray
637 ने देखा
3 दिन पहले
🔥 तर्कों के बाण और बलदेव की ढाल: जब गौड़ीय वेदांत ने राजसभा को स्तब्ध कर दिया 🔥 एक बार जयपुर की राजसभा में एक प्रख्यात नैयायिक (तर्कशास्त्री) पंडित ने खड़े होकर चुनौती दी: "हे नवीन संन्यासी! आपने वेदों के श्लोक तो सुना दिए, लेकिन केवल वेदों से काम नहीं चलेगा। महर्षि कपिल (सांख्य दर्शन) और महर्षि गौतम (न्याय दर्शन) ने ईश्वर को स्वीकार नहीं किया या प्रकृति को ही सब कुछ माना। क्या इन ऋषियों की बातें झूठी हैं? आपके सिद्धांत तो महाजनों के वाक्यों से 'विरोध' (Conflict) कर रहे हैं!" श्रील बलदेव विद्याभूषण जी ने मंद मुस्कान के साथ गोविंद जी का ध्यान किया और वेदांत सूत्र के दूसरे अध्याय का भाष्य आरंभ किया। 🛡️ 1. शुष्क तर्क की निर्थकता (तर्कप्रतिष्ठानात्) बलदेव जी बोले, "हे पंडितगण! आप मनुष्यों द्वारा बनाए गए 'लॉजिक' या सूखे तर्कों पर भरोसा कर रहे हैं? तर्क तो नदी के किनारे जैसा अस्थिर है—आज है, कल नहीं।" उन्होंने वेदांत सूत्र का वह प्रसिद्ध सूत्र फेंका जिसने तर्कवादियों को स्तब्ध कर दिया: 📜 "तर्कप्रतिष्ठानात् अपि अन्यथानुमेयरिति चेत् एवमप्यनिर्मोक्षप्रसंगः" (२/१/११) (तर्क की कोई प्रतिष्ठा या स्थायित्व नहीं है। एक तार्किक जो स्थापित करता है, दूसरा उसका खंडन कर देता है। इसलिए केवल तर्क से परम सत्य को नहीं जाना जा सकता।) उदाहरण: आज आप जिस तर्क से सिद्ध कर रहे हैं कि ईश्वर नहीं है, कल आपसे बड़ा कोई पंडित आकर सिद्ध कर देगा कि आपका तर्क गलत है। मनुष्य की बुद्धि सीमित (Finite) है, और ईश्वर असीमित (Infinite)। सीमित बुद्धि से असीमित को नहीं मापा जा सकता। इसलिए 'शब्द प्रमाण' या शास्त्र ही अंतिम सत्य है। ✨ 2. क्या जगत मिथ्या (Illusion) है? (मायावाद खंडन) अब अद्वैतवादी पंडित क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया: "यदि ईश्वर ने जगत बनाया और वह स्वयं जगत बन गया, तो वह टूटकर बिखर जाएगा! जैसे दूध दही बन जाने पर फिर दूध नहीं रहता, वैसे ही ब्रह्म यदि जगत बना तो ब्रह्म नष्ट हो जाएगा! इसलिए यह जगत 'माया' या मिथ्या है।" सभा में सन्नाटा छा गया। बलदेव विद्याभूषण ने तब अपने दर्शन का सबसे शक्तिशाली सिद्धांत 'शक्ति-परिणामवाद' प्रस्तुत किया। 📜 सूत्र: "श्रुतेस्तु शब्दमूलत्वात्" (२/१/२७) (शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्म में अचिंत्य शक्ति है, इसलिए वह बिना विकृत हुए परिणाम या सृष्टि कर सकता है।) 💎 चिंतामणि का उदाहरण: बलदेव जी बोले, "हे मायावादियों! आप दूध-दही का उदाहरण क्यों देते हैं? चिंतामणि (Touchstone) को देखिए। वह लोहे को छूकर सोना बना देती है, ढेर सारा सोना पैदा करती है, लेकिन अपने वजन या रूप में जरा भी नहीं बदलती। भगवान श्रीकृष्ण उसी चिंतामणि के समान हैं। उनकी 'अचिंत्य शक्ति' से उन्होंने यह जगत बनाया है। जगत सत्य है, लेकिन वे स्वयं उसमें विकारग्रस्त नहीं हुए। वे जैसे थे, वैसे ही हैं।" घोषणा: "जगत माया नहीं, जगत हरि की शक्ति है।" अणु 3. क्या जीव ही ब्रह्म है? (अंशो नानाव्यपदेशात्) विपक्ष ने अंतिम तर्क दिया: "ठीक है, जगत सत्य है। लेकिन जीवात्मा (हम) और परमात्मा (ईश्वर) तो एक ही हैं। जैसे घड़े का आकाश और बाहर का आकाश एक है, शरीर टूटते ही हम सब ब्रह्म हो जाएंगे।" बलदेव जी ने तीव्र प्रतिवाद किया और सिद्ध किया कि जीव कभी भगवान नहीं हो सकता। 📜 सूत्र: "अंशो नानाव्यपदेशात्..." (२/३/४३) (जीव भगवान का नित्य 'अंश' है। अंश कभी भी पूर्ण के बराबर नहीं हो सकता।) उदाहरण: "क्या सूर्य और सूर्य की किरण एक हैं? किरण सूर्य का अंश है, लेकिन किरण कभी सूर्य नहीं हो सकती। जीव भगवान का दास है, वह अणु (Atomic) है, और भगवान विभु (Infinite) हैं। जीव नित्य भिन्न है, और नित्य भगवान से जुड़ा हुआ भी है। यही 'अचिंत्यभेदाभेद' तत्त्व है।" 🏆 विजय और सिद्धांत बलदेव विद्याभूषण जी ने सिद्ध कर दिया कि: ✅ शुष्क तर्क से ईश्वर नहीं मिलते। ✅ जगत झूठी माया नहीं, भगवान की सत्य सृष्टि है। ✅ भगवान जगत बनाकर भी अपने स्वरूप में अटल हैं। महाराज जयसिंह मुग्ध होकर बोले, "हे आचार्य! आपने आज सारे विरोध मिटा दिए। आज सिद्ध हुआ कि गौड़ीय वैष्णव दर्शन केवल भावनाओं का विषय नहीं, सुदृढ़ तर्कों पर स्थापित है।" बलदेव जी ने गोविंद जी को इसका श्रेय देते हुए कहा: "जिन्होंने सभी विरोधों को समाप्त कर परम तत्त्व का निर्णय कराया, उन अद्भुतकर्मा श्री गोविंद की मैं वंदना करता हूँ।" इस प्रकार 'अविरोध अध्याय' में श्रील बलदेव विद्याभूषण जी ने दार्शनिक बाधाओं के पहाड़ को चूर्ण कर भक्ति का राजपथ प्रशस्त किया। जय श्रीराधे-गोविंद! जय गौड़ीय वेदांत! 🙏🌸 #sharechart #story #🙏 प्रेरणादायक बॅनर #🙏भक्ती सुविचार📝
See other profiles for amazing content