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लद्दाख कांड के पीछे भी अदानी ही निकला, जानिये परत दर परत!
लोग घर बैठे सोशल मीडिया पर देशभक्त और देशद्रोही लिख रहे हैं ; जो खुद आज तक लद्दाख नहीं गए और गए भी हैं तो लेह में रहकर और पैंगोंग लेक बस कार और बाइक से लद्दाख घूमने की ख्वाहिश पूरी करने और all is well करने ,तो मान लीजिए आपने रत्ती भर भी लद्दाख नहीं देखा और आपको कोई हक भी नहीं है कि किसी को देशद्रोही बोल बैठें झट से ...।
एक बार खुद जाकर देखिए मान गांव , चाइना बॉर्डर के पास और मॉडल विलेज phobrang और changthang गांव जाकर देखिए और गांव के लोगों से खुद बात करिए जहां का सॉफ्ट गोल्ड कहे जाने वाला पश्मीना पूरी दुनिया में फेमस है । आपको चरवाहे लोग खुद बताएंगे अपनी पशमीना भेड़ों को दिखाकर कि पहले दूर उस पहाड़ी तक हमारी बकरियां और भेड़ें खाने की तलाश में जाती थी ,फिर उनको लेने शाम को हम खुद जाते थे और अब एक समय ऐसा आ गया है कि वो पहाड़ी ही अब अपनी नहीं रही , ये सब देखकर दुख होता है कि अपनी जमीन पर हक अब धीरे- धीरे किसी और का ही हो रहा है और हमारे हाथ में कुछ नहीं रह जाएगा अब ... हमारा क्या होगा ?!! ये सब क्या खाएंगी ?!!
सोनम वांगचुक भी यही कहते हैं कि चारागाह की जो जमीनें कार्पोरेट घरानों को सौंपी गई हैं और सौंपी जा रही हैं, सोलर प्लांट के नाम पर या किसी और नाम पर वह बंद होना चाहिए। चरवाहों को उनकी चारागाह की जमीनें सौंपी जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि चारागाह की कुछ जमीनों पर चीन ने कब्जा कर लिया है और जो बची हैं, उन्हें कार्पोरेट को सौंपा जा रहा है। वे अफसोस जताते हैं कि यही वे चारागाह हैं, जहां वे भेंडे़ं पलती हैं, जिनसे दुनिया का सबसे बेहतरीन पश्मीना मिलता है। चारागाह खत्म होंगे तो पश्मीना भी खत्म हो जाएगा।
वांचुक का कहना है कि हिमालय के पर्यावरण को बचाया जाए, जो न केवल लद्दाख बल्कि उत्तर भारत की जीवन रेखा है। यहीं से उत्तर भारत में बहने वाली नदियां निकलती हैं। यहां के ग्लेशियर ही इन नदियों के जलस्रोत हैं। विकास के नाम पर लद्दाख के बहुत ही नाजुक पर्यावरण के साथ खेल किया जा रहा है, जो हमारे लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत भयानक साबित होने वाला है। कार्पोरेट को बिना सोचे-समझे जमीनें दी जा रही हैं, यहां के पर्यावरण को नष्ट करने वाले उद्योग लगाए जा रहे हैं। वे आगे कहते हैं कि भले ही इसके भयानक दुष्परिणाम आज न दिखें, लेकिन 30-40 सालों के भीतर सब कुछ तबाह हो जाएगा। इसे बचाना जरूरी है, न केवल लद्दाख के लिए बल्कि पूरे देश के लिए।
लद्दाख जहां बारिश न के बराबर होती थी , इस साल बारिश ने खुबानी और सेब की खेती बर्बाद कर दी और जहां कई साल पहले बर्फ कितने फीट में होती थी ,अब कुछ ही इंच में सिमटकर रह गई है !!! ऐसा क्लाइमेट चेंज का अनुभव एक बार खुद जाकर ठंडी में कीजिए ।
एक बार खुद जाकर देख आइए SECMOL और वहां के बच्चों से मिलिए और कैंपस टूर कर लीजिए क्योंकि अपने यहां तो ऐसे स्कूल नहीं है , जिनका टूर कराया जा सके !! आपका एक बार मन जरूर करेगा कि काश हम भी यहीं पढ़े होते ...। तब समझ आ जाएगा आखिर क्यों राजकुमार हिरनी ने वो स्कूल ही चुना मूवी के लिए ... और क्यों रैंचो सब कुछ छोड़कर लद्दाख चला गया था मूवी में ...??!!
एक बार जाकर देखिए सोलर टेंट ,जिसमें आर्मी के लोग रहते हैं और खुद सियाचिन जाकर देखिए ,जहां कैसे सोनम सर द्वारा कस्टमाइज्ड सोलर टेंट और कंटेनर में आर्मी के लोग , इतनी ठंडक में भी सीमा पर रहकर आखिर कैसे दिन–रात सेवा दे रहे हैं .. ?!!
एक बार जाकर देखिए जितने गांव में ice stupa project के तहत ice stupa बनाए जाते हैं, क्योंकि इतनी ठंडी में बनाए जाने वाले ice stupa को कुछ भी बोल देना आसान है ,लेकिन उसमे दिन रात लगने वाली मेहनत को देखना है, तो एक बार ही सही जनवरी –फ़रवरी में होकर आइए लद्दाख और हर वो गांव जाकर लोगों से खुद बात करिए , जिस जिस गांव में स्तूपा बनाए जाते हैं ...। ( गांव : phyang के आखिरी में , जी हां ,वही गांव जहां सोनम वांगचुक का HIAL इंस्टीट्यूट स्थित है और गांव : Tarchit , Gaya , Shara और कारगिल के कुछ गांव ) ।
. ##कौशिक-राज़... ✍️