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*🌞~ आज का हिन्दू पंचांग ~🌞* *⛅दिनांक - 10 नवम्बर 2025* *⛅दिन - सोमवार* *⛅विक्रम संवत् - 2082* *⛅अयन - दक्षिणायण* *⛅ऋतु - हेमंत* *⛅मास - मार्गशीर्ष* *⛅पक्ष - कृष्ण* *⛅तिथि - षष्ठी रात्रि 12:07 नवम्बर 11 तक तत्पश्चात् सप्तमी* *⛅नक्षत्र - पुनर्वसु शाम 06:48 तक तत्पश्चात् पुष्य* *⛅योग - साध्य दोपहर 12:05 तक तत्पश्चात् शुभ* *⛅राहुकाल - सुबह 08:01 से सुबह 09:24 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)* *⛅सूर्योदय - 06:37* *⛅सूर्यास्त - 05:44 (सूर्योदय एवं सूर्यास्त उज्जैन मानक समयानुसार)* *⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में* *⛅ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:54 से प्रातः 05:46 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)* *⛅अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11:48 से दोपहर 12:33 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)* *⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 11:45 से रात्रि 12:37 नवम्बर 11 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)* *⛅️व्रत पर्व विवरण - सर्वार्थसिद्धि योग (शाम 06:48 से प्रातः 06:38 नवम्बर 11 तक)* *🌥️विशेष - षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातून मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)* https://whatsapp.com/channel/0029VaARDIOAojYzV7E44245 #✡️ज्योतिष समाधान 🌟 #🌟देखिए खास ज्योतिष उपाय #🙏रोजाना भक्ति स्टेट्स *🔸शुभ कर्म करने के पहले आरती होती है तो शुभ कर्म शीघ्रता से फल देता है । शुभ कर्म करने के बाद अगर आरती करते हैं तो शुभ कर्म में कोई कमी रह गयी हो तो वह पूर्ण हो जाती है । स्कन्द पुराण में आरती की महिमा का वर्णन है । भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :* *मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्कृतं पूजनं मम ।* *सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने सुत ।।* *🔸‘जो मन्त्रहीन एवं क्रियाहीन (आवश्यक विधि-विधानरहित) मेरा पूजन किया गया है, वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है ।’ (स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड, मार्गशीर्ष माहात्म्य : ९:३७)* *🔹ज्योत की संख्या का रहस्य🔹* *🔸सामान्यत: ५ ज्योतवाले दीपक से आरती की जाती है, जिसे ‘पंचदीप’ कहा जाता है । आरती में या तो एक ज्योत हो या तो तीन हों या तो पाँच हों । ज्योत विषम संख्या (१,३,५,....) में जलाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है । यदि ज्योत की संख्या सम (२,४,६,...) हो तो ऊर्जा - संवहन की क्रिया निष्क्रिय हो जाती है ।* *🔹अतिथि की आरती क्यों ?🔹* *🔸हर व्यक्ति के शरीर से ऊर्जा, आभा निकलती रहती है । कोई अतिथि आता है तो हम उसकी आरती करते हैं क्योंकि सनातन संस्कृति में अतिथि को देवता माना गया है । हर मनुष्य की अपनी आभा है तो घर में रहनेवालों की आभा को उस अतिथि की नयी आभा विक्षिप्त न करे और वह अपने को पराया न पाये इसलिए आरती की जाती है । इससे उसको स्नेह-का-स्नेह मिल गया और घर की आभा में घुल-मिल गये । कैसी सुंदर व्यवस्था है सनातन धर्म की !”*
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