*श्रीमद्भागवत माहात्म्य*
*अध्याय एक*
*भक्ति नारद समागम*
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पूर्वकालमें श्रीमद्भागवतके श्रवणसे ही राजा परीक्षित्की मुक्ति देखकर ब्रह्माजी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ था। उन्होंने सत्यलोकमें तराजू बाँधकर सब साधनों को तौला ।। 18 ।। अन्य सभी साधन तौल में हलके पड़ गये, अपने महत्त्वके कारण भागवत ही सबसे भारी रहा। यह देखकर सभी ऋषियों को बड़ा विस्मय हुआ ।। 19 ।। उन्होंने कलियुगमें इस भगवद्रूप भागवतशास्त्रको ही पढ़ने-सुनने से तत्काल मोक्ष देनेवाला निश्चय किया ।। 20 ।। सप्ताह-विधिसे श्रवण करनेपर यह निश्चय भक्ति प्रदान करता है। पूर्व काल में इसे दयापरायण सनकादिने देवर्षि नारदको सुनाया था ।। 21 ।। यद्यपि देवर्षिने पहले ब्रह्माजीके मुखसे इसे श्रवण कर लिया था, तथापि सप्ताहश्रवणकी विधि तो उन्हें सनकादिने ही बतायी थी ।। 22 ।।
शौनकजीने पूछा — सांसारिक प्रपंचसे मुक्त एवं विचरणशील नारदजी का सनकादिके साथ संयोग कहाँ हुआ और विधि-विधान के श्रवणमें उनकी प्रीति कैसे हुई? ।। 23 ।।
सूतजीने कहा — अब मैं तुम्हें वह भक्तिपूर्ण कथानक सुनाता हूँ, जो श्रीशुकदेवजीने मुझे अपना अनन्य शिष्य जानकर एकान्त में सुनाया था ।। 24 ।। एक दिन विशालापुरीमें वे चारों निर्मल ऋषि सत्संगके लिये आये। वहाँ उन्होंने नारदजीको देखा ।। 25 ।।
सनकादिने पूछा — ब्रह्मन्! आपका मुख उदास क्यों हो रहा है? आप चिन्तातुर कैसे हैं? इतनी जल्दी-जल्दी आप कहाँ जा रहे हैं? और आपका आगमन कहाँ से हो रहा है? ।। 26 ।। इस समय तो आप उस पुरुष के समान व्याकुल जान पड़ते हैं जिसका सारा धन लुट गया हो; आप-जैसे आसक्तिरहित पुरुषों के लिये यह उचित नहीं है। इसका कारण बताइये ।। 27 ।।
हरि ॐ नमो नारायण
राणा जी खेड़ांवाली🚩1श्रीमद्भागवत माहात्म्य
अध्याय एक - भक्ति नारद समागम
नारदजीने कहा — मैं सर्वोत्तम लोक समझकर पृथ्वी में आया था। यहाँ पुष्कर, प्रयाग, काशी, गोदावरी (नासिक), हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, श्रीरंग और सेतुबन्ध आदि कई तीर्थों में मैं इधर-उधर विचरता रहा; किन्तु मुझे कहीं भी मन को संतोष देने वाली शान्ति नहीं मिली। इस समय अधर्म के सहायक कलि-युगने सारी पृथ्वी को पीड़ित कर रखा है ।। 28 - 30।। अब यहाँ सत्य, तप, शौच (बाहर-भीतरकी पवित्रता), दया, दान आदि कुछ भी नहीं है। बेचारे जीव केवल अपना पेट पालनेमें लगे हुए हैं; वे असत्यभाषी, आलसी, मन्दबुद्धि, भाग्यहीन, उपद्रवग्रस्त (रोग और विकार) हो गये हैं। जो साधु-संत कहे जाते हैं वे पूरे पाखण्डी हो गये हैं; देखने में तो वे विरक्त हैं, किन्तु स्त्री-धन आदि सभी का परिग्रह करते हैं। घरों में स्त्रियों का राज्य है, साले सलाहकार बने हुए हैं, लोभसे लोग कन्या-विक्रय करते हैं और स्त्री-पुरुषों में कलह मचा रहता है ।। 31 – 33 ।। महात्माओं के आश्रम, तीर्थ और नदियों पर यवनों (विधर्मियों) का अधिकार हो गया है; उन दुष्टोंने बहुत-से देवालय भी नष्ट कर दिये हैं ।। 34 ।। इस समय यहाँ न कोई योगी है न सिद्ध है; न ज्ञानी है और न सत्कर्म करनेवाला ही है। सारे साधन इस समय कलिरूप दावानलसे (जंगल में लगी आग) जलकर भस्म हो गये हैं ।। 35 ।। इस कलियुग में सभी देश वासी बाजारोंमें अन्न बेचने लगे हैं, ब्राह्मण लोग पैसा लेकर वेद पढ़ाते हैं और स्त्रियाँ वेश्या-वृत्ति से निर्वाह करने लगी हैं।। 36 ।।
इस तरह कलियुग के दोष देखता और पृथ्वी पर विचरता हुआ मैं यमुनाजी के तटपर पहुँचा जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण की अनेकों लीलाएँ हो चुकी हैं ।। 37 ।। मुनिवरो! सुनिये, वहाँ मैंने एक बड़ा आश्चर्य देखा। वहाँ एक युवती स्त्री खिन्न मनसे बैठी थी ।। 38 ।। उसके पास दो वृद्ध पुरुष अचेत अवस्था में पड़े जोर-जोर से साँस ले रहे थे। वह तरुणी (नवयुवती) उनकी सेवा करती हुई कभी उन्हें चेत कराने का प्रयत्न करती और कभी उनके आगे रोने लगती थी ।। 39 ।। वह अपने शरीर के रक्षक परमात्मा को दशों दिशाओं में देख रही थी। उसके चारों ओर सैकड़ों स्त्रियाँ उसे पंखा झल रही थीं और बार-बार समझाती जाती थीं ।। 40 ।। दूर से यह सब चरित देखकर मैं कुतूहल वश उसके पास चला गया। मुझे देखकर वह युवती खड़ी हो गयी और बड़ी व्याकुल होकर कहने लगी ।। 41 ।।
युवतीने कहा — अजी महात्माजी! क्षणभर ठहर जाइये और मेरी चिन्ता को भी नष्ट कर दीजिये। आपका दर्शन तो संसार के सभी पापों को सर्वथा नष्ट कर देने वाला है ।। 42 ।। आपके वचनों से मेरे दुःख की भी बहुत कुछ शान्ति हो जायगी। मनुष्य का जब बड़ा भाग्य होता है, तभी आपके दर्शन हुआ करते हैं ।। 43 ।।
हरि ॐ नमो नारायण
राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🕉️सनातन धर्म🚩