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श्रीसूक्त पाठ विधि 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 धन की कामना के लिए श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है। (श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .) प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें । पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: । तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें । निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं मध्यमाभ्यां वष्‌ट । 4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम्‌ । 5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट । 6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां फट्‌ । निम्न मन्त्रों से षड़ांग न्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं हृदयाय नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं शिरसे स्वाहा । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं शिखायै वष्‌ट । 4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं कवचायै हुम्‌ । 5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट । 6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं अस्त्राय फट्‌ । श्री पादुकां पूजयामि नमः बोलकर शंख के जल से अर्घ्य प्रदान करते रहें । श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से गुरू पूजन करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः । 3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः । श्री चक्र महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान करके योनि मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए पुन: इस मन्त्र से तीन बार पूजन करें :- ॐ श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री विद्या राज राजेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः । अब श्रीसूक्त का विधिवत पाठ करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 ॐ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्यमयींलक्ष्मींजातवेदो मऽआवह ।।1।। तांम आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्या हिरण्यं विन्देयंगामश्वं पुरुषानहम् ।।2।। अश्वपूर्वां रथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ।।3।। कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्रां ज्वलन्तींतृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितांपद्मवर्णा तामिहोपह्वयेश्रियम् ।।4।। चन्द्रां प्रभासांयशसां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवीजुष्टामुदाराम् । तांपद्मिनींमीं शरण प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतांत्वां वृणे ।।5।। आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फ़लानि तपसानुदन्तुमायान्तरा याश्चबाह्या अलक्ष्मीः ।।6।। उपैतु मां देवसखःकीर्तिश्चमणिना सह । प्रादुर्भूतोसुराष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।। 7।। क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मींनाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात् ।।8।। गन्धद्वारांदुराधर्षां नित्यपुष्टांकरीषिणीम् । ईश्वरींसर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।9।। मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमशीमहि । पशुनांरुपमन्नस्य मयिश्रीःश्रयतांयशः ।।10।। कर्दमेन प्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम । श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।11।। आपःसृजन्तु स्निग्धानिचिक्लीतवस मे गृहे । नि च देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।12।। आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्मालिनीम् । चन्द्रां हिरण्मयींलक्ष्मी जातवेदो मेंआवह ।।13।। आर्द्रा यःकरिणींयष्टिं सुवर्णा हेममालिनीम् । सूर्या हिरण्मयींलक्ष्मींजातवेदो म आवह ।।14।। तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।15।। यःशुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् । सूक्तमं पंचदशर्च श्रीकामःसततं जपेत् ।।16।। 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 #👣 જય માતાજી #👣 જય મેલડી માઁ #🏵️દેવી કુષ્માંડા🏵️ #🏵️દેવી ચંદ્રઘંટા🏵️ #🙏હિન્દૂ દેવી-દેવતા🌺
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5 દિવસ પહેલા
🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺 *🚩🌺 पितरों की विदाई की वेला पर श्रद्धांजलि 🚩🌺* 🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺 *🚩🌺नत मस्तक हम करते हैं प्रणाम,* *हे पितरों! स्वीकारो श्रद्धा के अरमान।* *🚩🌺तुम्हीं थे आधार इस जीवन के,* *तुम्हीं थे दीपक अंधकार हरन के।* *🚩🌺आज तर्पण जल की धार कह रही,* *तेरी कृपा से यह सांस चल रही।* *🚩🌺संसार में जो भी सुख पाया हमने,* *वह तुम्हारे तप और बलिदान से मिले।* *🚩🌺आओ अंतिम वेला का सत्कार करें,* *आशीष लेकर तुम्हें विदा करें।* *🚩🌺विदाई है पर बिछोह नहीं होगा,* *तुम्हारा स्मरण हर पल संग होगा।* *🚩🌺यज्ञ की अग्नि में गूँजे तुम्हारा नाम,* *फूलों की पंखुड़ियाँ करें प्रेम का प्रणाम।* *🚩🌺हम निभाएँगे मर्यादा, धर्म और सत्य,* *यही होगी सच्ची श्रद्धांजलि की ज्योति।* *🚩🌺हे पितरों! लौटो अपने दिव्य लोक,* *पर स्मृति रहेगी हृदय में हर शोक।* *🚩🌺विदाई में आँसू हैं, पर गर्व भी अपार,* *तुम्हारे संस्कारों से है जीवन साकार।* *🚩🌺आज अमावस्या की गहन निस्तब्ध रात,* *दीपक की लौ में झलक रहा है उनका साथ।* *🚩🌺स्मृतियों के आँगन में गूँज रही है वाणी,* *जैसे कह रही हो — "स्मरण रखो सन्तानी।"* *🚩🌺पितरों की छाया है हर श्वास के संग,* *उनके ही आशीष से जीवन में है रंग।* *🚩🌺तर्पण की धार से मन करता प्रणाम,* *श्रद्धा के सुमन चढ़े, झुके सबके प्राण।* *🚩🌺वे आये थे कुछ दिन हमारे आँगन में,* *आशीष बरसाने प्रेम के सागर में।* *🚩🌺अब लौट रहे हैं दिव्य लोक की राह,* *मन कहता है — "फिर मिलेंगे एक दिन, अथाह।"* *🚩🌺विदाई की घड़ी है, अश्रु सजल नयन,* *किन्तु हृदय में बसता उनका ही दर्शन।* *🚩🌺कर्मपथ पर चलना यही सच्चा तर्पण,* *उनकी परम्परा ही है जीवन का अर्जन।* *🚩🌺हे पितरों! चरणों में शत शत नमन,* *आपकी स्मृति रहे हर क्षण-प्रतिक्षण।* *🚩🌺श्रद्धा के दीप से आलोकित हो जीवन,* *सदा मिले आशीष, सदा रहे संतोषमय मन।* 🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺 #pitru paksh katha🙏 #pitru #pitru shrada #pitru paksh #pitru paksh🙏
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6 દિવસ પહેલા
🕉️🚩1500 વર્ષ જૂનું કરાચીનું શ્રી પંચમુખી હનુમાનજી મંદિર!🙏🛕Hanumanji Mandir😳😯#tirthyatraa #shorts #હનુમાન #shree hanu hanumante #jay sarangpur hanuman# today darshan # jay hanu man# #🎬 ભક્તિ વીડિયો #Tirthyatraa
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7 દિવસ પહેલા
मोक्षदायिनी सप्तपुरियां कौन कौन सी हैं? 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ सप्तपुरी पुराणों में वर्णित सात मोक्षदायिका पुरियों को कहा गया है। इन पुरियों में 'काशी', 'कांची' (कांचीपुरम), 'माया' (हरिद्वार), 'अयोध्या', 'द्वारका', 'मथुरा' और 'अवंतिका' (उज्जयिनी) की गणना की गई है। 'काशी कांची चमायाख्यातवयोध्याद्वारवतयपि, मथुराऽवन्तिका चैताः सप्तपुर्योऽत्र मोक्षदाः'; 'अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका, पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।' पुराणों के अनुसार इन सात पुरियों या तीर्थों को मोक्षदायक कहा गया है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- 1. अयोध्या 〰️〰️〰️〰️ अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। दशरथ अयोध्या के राजा थे। श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था। राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएँ तट पर स्थित है। अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहाँ आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। 2. मथुरा 〰️〰️〰️ पुराणों में मथुरा के गौरवमय इतिहास का विषद विवरण मिलता है। अनेक धर्मों से संबंधित होने के कारण मथुरा में बसने और रहने का महत्त्व क्रमश: बढ़ता रहा। ऐसी मान्यता थी कि यहाँ रहने से पाप रहित हो जाते हैं तथा इसमें रहने करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वराह पुराण में कहा गया है कि इस नगरी में जो लोग शुध्द विचार से निवास करते हैं, वे मानव के रूप में साक्षात देवता हैं।[3] श्राद्ध कर्म का विशेष फल मथुरा में प्राप्त होता है। मथुरा में श्राद्ध करने वालों के पूर्वजों को आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है।उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने मथुरा में तपस्या कर के नक्षत्रों में स्थान प्राप्त किया था। पुराणों में मथुरा की महिमा का वर्णन है। पृथ्वी के यह पूछने पर कि मथुरा जैसे तीर्थ की महिमा क्या है? महावराह ने कहा था- "मुझे इस वसुंधरा में पाताल अथवा अंतरिक्ष से भी मथुरा अधिक प्रिय है। वराह पुराण में भी मथुरा के संदर्भ में उल्लेख मिलता है, यहाँ की भौगोलिक स्थिति का वर्णन मिलता है।यहाँ मथुरा की माप बीस योजन बतायी गयी है। इस मंडल में मथुरा, गोकुल, वृन्दावन, गोवर्धन आदि नगर, ग्राम एवं मंदिर, तड़ाग, कुण्ड, वन एवं अनगणित तीर्थों के होने का विवरण मिलता है। इनका विस्तृत वर्णन पुराणों में मिलता है। गंगा के समान ही यमुना के गौरवमय महत्त्व का भी विशद विवरण किया गया है। पुराणों में वर्णित राजाओं के शासन एवं उनके वंशों का भी वर्णन प्राप्त होता है। 3. हरिद्वार 〰️〰️〰️〰️ हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में एक है। भारत के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्वार को मायापुरी कहा गया है। गंगा नदी के किनारे बसा हरिद्वार अर्थात हरि तक पहुंचने का द्वार है। हरिद्वार को धर्म की नगरी माना जाता है। सैकडों सालों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं। इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना यहाँ लगा रहता है। गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। उत्तराखंड क्षेत्र के चार प्रमुख तीर्थस्थलों का प्रवेश द्वार हरिद्वार ही है। संपूर्ण हरिद्वार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं। 4. काशी 〰️〰️〰️ वाराणसी, काशी अथवा बनारस भारत देश के उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और धार्मिक महत्ता रखने वाला शहर है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। वाराणसी विश्व का प्राचीनतम बसा हुआ शहर है। यह गंगा नदी किनारे बसा है और हज़ारों साल से उत्तर भारत का धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पडा। बनारस या वाराणसी का नाम पुराणों, रामायण, महाभारत जैसे अनेकानेक ग्रन्थों में मिलता है। संस्कृत पढने प्राचीन काल से ही लोग वाराणसी आया करते थे। वाराणसी के घरानों की हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी ही शैली है। 5. कांचीपुरम 〰️〰️〰️〰️ कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है, जो मद्रास से 45 मील की दूरी पर दक्षिण–पश्चिम में स्थित है। कांचीपुरम को कांची भी कहा जाता है। यह आधुनिक काल में कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऐसी अनुश्रुति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्मा जी ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था। मोक्षदायिनी सप्त पुरियों अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया(हरिद्वार), काशी और अवन्तिका (उज्जैन) में इसकी गणना की जाती है। कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। सम्भवत: कामाक्षी अम्मान मंदिर ही यहाँ का शक्तिपीठ है। 6. अवंतिका 〰️〰️〰️〰️ उज्जयिनी का प्राचीनतम नाम अवन्तिका, अवन्ति नामक राजा के नाम पर था। [9] इस जगह को पृथ्वी का नाभिदेश कहा गया है। महर्षि सान्दीपनि का आश्रम भी यहीं था। उज्जयिनी महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। 7. द्वारका 〰️〰️〰️ द्वारका का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। बाद में त्रिविकम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी। हरिवंश पुराण के अनुसार कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था जहां यादवों ने द्वारका बसाई थी। विष्णु पुराण के अनुसार,अर्थात् आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया। विष्णु पुराण से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी-'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ #🎬 ભક્તિ વીડિયો #🙏હિન્દૂ દેવી-દેવતા🌺 #🙏 મારી કુળદેવી માં #👣 જય મેલડી માઁ #Tirthyatraa
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7 દિવસ પહેલા
*क्या आपके घर में दुर्गा सप्तशती है ?* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हाँ! है तो पाठ क्रम एवं, आहुति, उपासना जानिए #उपासना क्रमः उपासना क्रम में पहिले शापोद्धार, उत्कीलन करके कवचादि पाठ करे। "आर्ष पाठक्रम" में सप्तशती के छः अंगों सहित पाठ करने का क्रम लिखा हैं। (१) कवच (२) अर्गला (३) कीलक (४) प्राधानिक रहस्य (५) वैकृतिक रहस्य (६) मूर्तिरहस्य।शापोद्वार पाठ के पूर्व व अंत में सात बार निम्न मंत्र का जाप करें - ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शापनाशाऽनुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा। 1. सप्तशती के अध्यायों में १३-१, १२-२, ११-३, १०-४, ९-५, ८-६ का पाठ करके सातवें अध्याय को दो बाद पढ़ने से शापोद्धार होता हैं। 2. सप्तशती का पहिले मध्यम चरित्र फिर प्रथम चरित्र तत्पश्चात् उत्तर चरित्र को पाठ करने से उत्कीलन होता हैं। 3. "दुर्गोपासना कल्पद्रुम" में भी कई प्रकार हैं। जो नित्य दुर्गापाठ नहीं कर सकते है वो पहले दिन एक अध्याय, दूसरे दिन दो अध्याय, तीसरे दिन एक अध्याय, चौथे दिन चार अध्याय, पाँचवे दिन दो अध्याय छठे दिन एक अध्याय और सातवे दिन अंतिम दो अध्यायों का पाठ कर तीनों चरित्रों का परायण करें। अथवा प्रथम दिन प्रथम चरित्र, द्वितीय दिन मध्यम चरित्र और तृतीय दिन उत्तर चरित्र का पाठकर परायण करें। 4. वैकृतिक रहस्य में आया है कि यदि " एक ही चरित्र का" पाठ करे तो केवल मध्यम चरित्र का ही पाठ करे प्रथम व उत्तर चरित्र का पाठ नहीं करे। आधे चरित्र का भी पाठ नहीं करे। उत्कीलन (१) मंत्र का २१ बार जप करें- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सप्तशती चण्डिके उत्कीलनं कुरुकुरु स्वाहा। #सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् (बहुत गुप्त पाठ है ) कुञ्जिका स्तोत्र पाठ विषय में भ्रांति हैं कि इसके पाठ के फल से दुर्गापाठ का फल मिल जाता हैं तो फिर सप्तशती के पाठ की क्या आवश्यकता हैं अतः सप्तशती पठन के पश्चात् कुञ्जिका स्तोत्र का पाठ करें। परन्तु इसी स्तोत्र में लिखा हैं कि "इदं तु कुञ्जिका स्तोत्रं- मंत्र जागर्ति हेतवे" मंत्र के जाग्रति की प्रार्थना तो मंत्र जपने से पहिले ही करनी चाहिये। जैसे के माला मंत्रों में (ॐ मां माले महामाये.......) प्रयोग में आया हैं। #पुनः तंत्र ग्रंथों में लिखा हैं कि "भूत लिपि" के प्रयोग के बिना मंत्र सिद्ध नहीं होता हैं। इस स्तोत्र में "अं, कं, चं, टं, तं, पं, यं, शं" शब्द आये हैं इनका अर्थ हैं, अ वर्ग, क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, य वर्ग, श वर्ग, अर्थात् समस्त मातृका का उच्चारण व स्मरण हैं। अतः इसमें "भूत " लिपि" जाग्रति की सूक्ष्म क्रिया का समावेश है। मंत्र जागृति के २७ जप रहस्य हैं उनमें दोहन, आकर्षण, अमृतीकरण, दीप्तीकरण आदि हैं उनका प्रयोग इस स्तोत्र में नवार्ण मंत्र में हैं, उनमें आये बीजाक्षरों को देखने से मिलता हैं। नवार्ण मन्त्र जप विधानम् #सप्तशती में जो मूल मंत्र हैं वह नवाक्षर हैं। ॐ लगाने से दशाक्षरी हो जाता हैं, किन्हीं किन्हीं आचार्यों के मत से किसी मंत्र में प्रारंभ में प्रणव या नमः लगाने से मंत्र में नपुंसक प्रभाव आ जाता हैं, बीजाक्षर प्रधान हैं। तांत्रिक प्रणब "ह्रीं" हैं। अतः माला के जप में प्रारंभ में "ॐ" लगावे तथा जब माला पूरी हो जावे तो माला के अंत में "ॐ" लगाये यहीं मंत्र जाग्रति है। दक्षिण भारत में कहीं कहीं ॐ सहित दशाक्षर मन्त्र महाकाली हेतु दस पाद दस हस्तादि संबोधन मानकर जप करते हैं। #अगर मंत्र सिद्ध नहीं हो रहा हैं, उसके स्थान पर कठिनाईयाँ आती है तो "ऐं" के सवालाख "ह्रीं" के सवा लाख "क्लीं" के सवा लाख "चामुण्डायै विच्चे" के सवा लाख जप करायें फिर नवार्ण का पुरश्चरण करायें, ऐसा कराने से हमने सफलता देखी हैं।|| हवन विशेष || हवन हेतु पत्र (शमीपत्र, बेलपत्र अथवा नागरबेल का पान), पुष्प, फल का उल्लेख मिलता है #नवदुर्गा के विषय में हवनीय द्रव्य इस प्रकार है - शैलपुत्री हेतु - शीलाजीत । ब्रह्मचारिणी हेतु ब्राह्मी। चन्द्रघण्टा हेतु सहदेवी। कुष्माण्डा हेतु -लोकी, कुष्माण्ड । स्कन्दमाता हेतु आमीहल्दी। कात्यायनी हेतु बहड़। कालरात्रि हेतु नीमगिलोय। महागौरी हेतु - दारुहल्दी। सिद्धिदात्री हेतु आंवले का प्रयोग करें। #👣 જય મેલડી માઁ #🙏હિન્દૂ દેવી-દેવતા🌺 #Tirthyatraa #🙏 મારી કુળદેવી માં #🎬 ભક્તિ વીડિયો
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