*क्या आपके घर में दुर्गा सप्तशती है ?*
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हाँ! है तो पाठ क्रम एवं, आहुति, उपासना जानिए
#उपासना क्रमः
उपासना क्रम में पहिले शापोद्धार, उत्कीलन करके कवचादि पाठ करे। "आर्ष पाठक्रम" में सप्तशती के छः अंगों सहित पाठ करने का क्रम लिखा हैं।
(१) कवच
(२) अर्गला
(३) कीलक
(४) प्राधानिक रहस्य
(५) वैकृतिक रहस्य
(६) मूर्तिरहस्य।शापोद्वार
पाठ के पूर्व व अंत में सात बार निम्न मंत्र का जाप करें - ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शापनाशाऽनुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा।
1. सप्तशती के अध्यायों में १३-१, १२-२, ११-३, १०-४, ९-५, ८-६ का पाठ करके सातवें अध्याय को दो बाद पढ़ने से शापोद्धार होता हैं।
2. सप्तशती का पहिले मध्यम चरित्र फिर प्रथम चरित्र तत्पश्चात् उत्तर चरित्र को पाठ करने से उत्कीलन होता हैं।
3. "दुर्गोपासना कल्पद्रुम" में भी कई प्रकार हैं। जो नित्य दुर्गापाठ नहीं कर सकते है वो पहले दिन एक अध्याय, दूसरे दिन दो अध्याय, तीसरे दिन एक अध्याय, चौथे दिन चार अध्याय, पाँचवे दिन दो अध्याय छठे दिन एक अध्याय और सातवे दिन अंतिम दो अध्यायों का पाठ कर तीनों चरित्रों का परायण करें। अथवा प्रथम दिन प्रथम चरित्र, द्वितीय दिन मध्यम चरित्र और तृतीय दिन उत्तर चरित्र का पाठकर परायण करें।
4. वैकृतिक रहस्य में आया है कि यदि " एक ही चरित्र का" पाठ करे तो केवल मध्यम चरित्र का ही पाठ करे प्रथम व उत्तर चरित्र का पाठ नहीं करे। आधे चरित्र का भी पाठ नहीं करे। उत्कीलन
(१) मंत्र का २१ बार जप करें- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सप्तशती चण्डिके उत्कीलनं कुरुकुरु स्वाहा।
#सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् (बहुत गुप्त पाठ है )
कुञ्जिका स्तोत्र पाठ विषय में भ्रांति हैं कि इसके पाठ के फल से दुर्गापाठ का फल मिल जाता हैं तो फिर सप्तशती के पाठ की क्या आवश्यकता हैं अतः सप्तशती पठन के पश्चात् कुञ्जिका स्तोत्र का पाठ करें। परन्तु इसी स्तोत्र में लिखा हैं कि
"इदं तु कुञ्जिका स्तोत्रं- मंत्र जागर्ति हेतवे"
मंत्र के जाग्रति की प्रार्थना तो मंत्र जपने से पहिले ही करनी चाहिये। जैसे के माला मंत्रों में (ॐ मां माले महामाये.......) प्रयोग में आया हैं।
#पुनः तंत्र ग्रंथों में लिखा हैं कि "भूत लिपि" के प्रयोग के बिना मंत्र सिद्ध नहीं होता हैं। इस स्तोत्र में "अं, कं, चं, टं, तं, पं, यं, शं" शब्द आये हैं इनका अर्थ हैं, अ वर्ग, क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, य वर्ग, श वर्ग, अर्थात् समस्त मातृका का उच्चारण व स्मरण हैं। अतः इसमें "भूत " लिपि" जाग्रति की सूक्ष्म क्रिया का समावेश है। मंत्र जागृति के २७ जप रहस्य हैं उनमें दोहन, आकर्षण, अमृतीकरण, दीप्तीकरण आदि हैं उनका प्रयोग इस स्तोत्र में नवार्ण मंत्र में हैं, उनमें आये बीजाक्षरों को देखने से मिलता हैं। नवार्ण मन्त्र जप विधानम्
#सप्तशती में जो मूल मंत्र हैं वह नवाक्षर हैं। ॐ लगाने से दशाक्षरी हो जाता हैं, किन्हीं किन्हीं आचार्यों के मत से किसी मंत्र में प्रारंभ में प्रणव या नमः लगाने से मंत्र में नपुंसक प्रभाव आ जाता हैं, बीजाक्षर प्रधान हैं। तांत्रिक प्रणब "ह्रीं" हैं। अतः माला के जप में प्रारंभ में "ॐ" लगावे तथा जब माला पूरी हो जावे तो माला के अंत में "ॐ" लगाये यहीं मंत्र जाग्रति है। दक्षिण भारत में कहीं कहीं ॐ सहित दशाक्षर मन्त्र महाकाली हेतु दस पाद दस हस्तादि संबोधन मानकर जप करते हैं।
#अगर मंत्र सिद्ध नहीं हो रहा हैं, उसके स्थान पर कठिनाईयाँ आती है तो "ऐं" के सवालाख "ह्रीं" के सवा लाख "क्लीं" के सवा लाख "चामुण्डायै विच्चे" के सवा लाख जप करायें फिर नवार्ण का पुरश्चरण करायें, ऐसा कराने से हमने सफलता देखी हैं।|| हवन विशेष ||
हवन हेतु पत्र (शमीपत्र, बेलपत्र अथवा नागरबेल का पान), पुष्प, फल का उल्लेख मिलता है
#नवदुर्गा के विषय में हवनीय द्रव्य इस प्रकार है -
शैलपुत्री हेतु - शीलाजीत ।
ब्रह्मचारिणी हेतु ब्राह्मी।
चन्द्रघण्टा हेतु सहदेवी।
कुष्माण्डा हेतु -लोकी, कुष्माण्ड ।
स्कन्दमाता हेतु आमीहल्दी।
कात्यायनी हेतु बहड़।
कालरात्रि हेतु नीमगिलोय।
महागौरी हेतु - दारुहल्दी।
सिद्धिदात्री हेतु आंवले का प्रयोग करें।
#👣 જય મેલડી માઁ #🙏હિન્દૂ દેવી-દેવતા🌺 #Tirthyatraa #🙏 મારી કુળદેવી માં #🎬 ભક્તિ વીડિયો