🙏राम राम जी : CJC🙏
*छुट्टियाँ*
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बच्चे अभी-अभी गर्मी की छुट्टियां बिताकर घर लौटे थे। माँ ने कहा- *" मुन्नी और बाबू! तुम दोनों बहुत घूम-फिर लिए। अब हाथ-मूँह धोकर कुछ खा लो और होमवर्क करने बैठ जाओ। परसों से स्कूल शुरु होने वाली है। कहीं भी आना-जाना, खेल-कूद सब बंद। केवल होमवर्क।"*
बच्चों का मूँह लटक गया। *माँ भी तनाव में आ गई। आखिर माँ को भी तो होमवर्क करवाने बच्चों के साथ बैठना था।*
उसी बंगले के बाहर फूटपाथ पर एक कोने में बनी *छोटी सी टूटी-फूटी झोपड़ी में दो बच्चे हाँफते हुए आए*।
उनकी माँ ने पूछा- *" क्या बात है बच्चों! आज थोडे़ खुश नजर आ रहे हो?"*
बच्चे बोले- *" माँ! हमें पता लगा है, परसों से स्कूल खुल रही है। अब तुम जल्दी से चाकलेट और बिस्कुट ले आओ। थोडे़ पेन, पेन्सिल, रबर भी ले आना।* और हाँ! *इस बार चटाई अच्छी सी लाना ताकि स्कूल के बाहर बिछा कर सामान आराम से बेच सकें।"*
बंगले के अन्दर स्कूल खुलने पर माँ तनाव में थी, बाहर फुटपाथ पर माँ स्कूल खुलने पर प्रसन्न थी कि कम से कम बच्चों का तो पेट भर सकेगा।
दोस्तों, *हमें अपने आराम और परेशानियों को दूसरों की कठिनाइयों के संदर्भ में देखना चाहिए, क्योंकि जो बात हमें बोझ लगती है, वही किसी और के लिए राहत या अवसर का कारण बन सकती है। क्योंकि जब हम अपनी समस्याओं की तुलना दूसरों की चुनौतियों से करते हैं, तब हमें अपने जीवन की सुविधाओं और उपलब्धियों का वास्तविक मूल्य समझ में आता है।*
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