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।। ॐ ।। श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥ एक साधक दस वर्ष से साधना में लगा हुआ है और दूसरा आज साधना में प्रवेश ले रहा है। दोनों की क्षमता एक-जैसी नहीं होगी। प्रारम्भिक साधक यदि उसकी नकल करता है तो नष्ट हो जायेगा। इसी पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि अच्छी प्रकार आचरण किये हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अधिक उत्तम है। स्वभाव से उत्पन्न कर्म में प्रवृत्त होने की क्षमता स्वधर्म है। अपनी क्षमता के अनुसार कर्म में प्रवृत्त होने से साधक एक-न-एक दिन पार पा जाता है। अतः स्वधर्माचरण में मरना भी परम कल्याणकारी है। जहाँ से साधन छूटेगा, शरीर मिलने पर वहीं से पुनः प्रारम्भ होगा। आत्मा तो मरता नहीं, शरीर (वस्त्र) बदलने से आपके बुद्धि, विचार बदल तो नहीं जाते? आगेवालों की तरह स्वांग बनाने से साधक भय को प्राप्त होगा। भय प्रकृति में होता है, परमात्मा में नहीं। प्रकृति का आवरण और घना हो उठेगा। #यथार्थ गीता #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख
यथार्थ गीता - VOOESIIWAR_SADOUBO 5200 YOGESHWIAR_ SADGURU 5200 VOOESIIWAR_SADOUBO 5200 YOGESHWIAR_ SADGURU 5200 - ShareChat

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