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।। ॐ ।। सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत। कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसङ्ग्रहम्॥ हे भारत! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जैसे कर्म करते हैं, वैसे ही अनासक्त हुआ विद्वान्, पूर्णज्ञाता भी लोक-हृदय में प्रेरणा और कल्याण-संग्रह चाहता हुआ कर्म करे। यज्ञ की विधि जानते और करते हुए भी हम अज्ञानी हैं। ज्ञान का अर्थ है प्रत्यक्ष जानकारी। जब तक लेशमात्र भी हम अलग हैं, आराध्य अलग है तब तक अज्ञान विद्यमान है। जब तक अज्ञान है, तब तक कर्म में आसक्ति रहती है। अज्ञानी जितनी आसक्ति से आराधना करता है, उसी प्रकार अनासक्त। जिसे कर्मों से प्रयोजन नहीं है तो आसक्ति क्यों होगी? ऐसा पूर्णज्ञाता महापुरुष भी लोकहित के लिये कर्म करे, दैवी सम्पद् का उत्कर्ष करे, जिससे समाज उस पर चल सके। #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख #🧘सदगुरु जी🙏
यथार्थ गीता - 30  कुर्वन्ति भारत कर्मण्यविद्वांसो यथा सक्ता 184d Tdl कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीपुरलीकसङ्गहमा भारत! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जैसे कर्म करते  aa हैं वैसे ही अनासक्त हुआ भी पूर्णज्ञाता लोक हृदय में प्रेरणा और कल्याण संग्रह चाहता हुआ कर्म करे। यज्ञ की विधि जानते और करते हुए भी हम  अज्ञानी ह। ज्ञान का अर्थ है प्रत्यक्ष जानकारी। जबतक भी हम लेशमात्र अलग हेः आराध्य अलग है तवतक अज्ञान विद्यमान है। जव तक अज्ञान है॰ तबतक कर्म मे आसक्ति रहती है। अज्ञानी जितनी आसक्ति से आराधना  करता है॰ उसी प्रकार अनासक्ता जिसे कर्मीसे प्रयोजन नहीं है तो आसक्ति क्यों होगी ? ऐसा  पूर्णज्ञाता महापुरुष भी लोकहित केलिये कर्म करे दैवी सम्पद का उत्कर्ष करे, जिससे समाज उस परचल सके 30  कुर्वन्ति भारत कर्मण्यविद्वांसो यथा सक्ता 184d Tdl कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीपुरलीकसङ्गहमा भारत! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जैसे कर्म करते  aa हैं वैसे ही अनासक्त हुआ भी पूर्णज्ञाता लोक हृदय में प्रेरणा और कल्याण संग्रह चाहता हुआ कर्म करे। यज्ञ की विधि जानते और करते हुए भी हम  अज्ञानी ह। ज्ञान का अर्थ है प्रत्यक्ष जानकारी। जबतक भी हम लेशमात्र अलग हेः आराध्य अलग है तवतक अज्ञान विद्यमान है। जव तक अज्ञान है॰ तबतक कर्म मे आसक्ति रहती है। अज्ञानी जितनी आसक्ति से आराधना  करता है॰ उसी प्रकार अनासक्ता जिसे कर्मीसे प्रयोजन नहीं है तो आसक्ति क्यों होगी ? ऐसा  पूर्णज्ञाता महापुरुष भी लोकहित केलिये कर्म करे दैवी सम्पद का उत्कर्ष करे, जिससे समाज उस परचल सके - ShareChat

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