रामकृष्ण परमहंस के अद्वितीय अनुभवों और शिक्षाओं ने न केवल भारतीय समाज को, बल्कि सम्पूर्ण मानवता को एक नई दिशा दी है। उनकी दिव्य दृष्टि ने उन्हें विभिन्न धर्मों में एकता का दर्शन कराया। एक बार, मदोना और बालक के चित्र को निहारते हुए, उन्होंने उसे जीवन्त होते देखा और हृदय में समाहित कर लिया। कुछ दिन बाद, पञ्चवटी में चलते हुए, उन्होंने ईसा मसीह को अपनी ओर आते देखा, जिन्होंने उन्हें गले लगाया और उनके शरीर में समाहित हो गए। इस अनुभव से उन्होंने यह सिद्ध किया कि सभी धर्मों में एक ही दिव्य सत्ता का वास है। उनकी शिक्षाओं में 'आत्मनो मोक्षार्थम् जगत् हिताय च' का उद्घोषित मंत्र है, जिसका अर्थ है 'अपने आत्मा की मुक्ति और सम्पूर्ण जगत की भलाई'। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, "जो कुछ भी मैं हूँ, वह मेरे गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कृपा से हूँ।" उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें जीवन में सत्य, प्रेम और एकता की ओर प्रेरित करती हैं। उनकी जीवन यात्रा और शिक्षाएँ आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक हैं। उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारने से हम आत्मिक शांति और समाज में सद्भावना स्थापित कर सकते हैं।
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