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।। ॐ ।। सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि। प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति॥ सभी प्राणी अपनी प्रकृति को प्राप्त होते हैं। अपने स्वभाव से परवश होकर कर्म में भाग लेते हैं। प्रत्यक्षदर्शी ज्ञानी भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है। प्राणी अपने कर्मों में बरतते हैं और ज्ञानी अपने स्वरूप में। जैसा जिसकी प्रकृति का दबाव है, वैसा ही कार्य करता है। यह स्वयंसिद्ध है। इसमें निराकरण कोई क्या करेगा? यही कारण है कि सभी लोग मेरे मत के अनुसार कर्म में प्रवृत्त नहीं हो पाते। वे आशा, ममता, संताप का; दूसरे शब्दों में राग-द्वेष का त्याग नहीं कर पाते, जिससे कर्म का सम्यक् आचरण नहीं हो पाता। इसी को और स्पष्ट करते हैं और दूसरा कारण बताते हैं- #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख
यथार्थ गीता - पष्ते ननासरताननप ಭ43`Il 0-~ -+-=7=~~71/+ फपणचग गशगन्त ٥    - న पष्ते ननासरताननप ಭ43`Il 0-~ -+-=7=~~71/+ फपणचग गशगन्त ٥    - న - ShareChat

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