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#दिल के अल्फाज़
दिल के अल्फाज़ - मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा बो रहा हूँ बीज कुछ संवेदनाओं के यहाँ ख़ुशबुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा अपने गीतों को सियासत की ज़ुबां से दूर रख पँखुरी के वक्ष में काँटा गड़ा रह जाएगा मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मंज़िल नहीं मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा कल बिखर जाऊँगा हरसू , मैं भी शबनम की तरह किरणें चुन लेंगी मुझे, जग खोजता रह जाएगा.. मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा बो रहा हूँ बीज कुछ संवेदनाओं के यहाँ ख़ुशबुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा अपने गीतों को सियासत की ज़ुबां से दूर रख पँखुरी के वक्ष में काँटा गड़ा रह जाएगा मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मंज़िल नहीं मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा कल बिखर जाऊँगा हरसू , मैं भी शबनम की तरह किरणें चुन लेंगी मुझे, जग खोजता रह जाएगा.. - ShareChat

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