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।। ॐ ।। तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ हे महाबाहो ! गुण और कर्म के विभाग को 'तत्त्ववित्' - परमतत्त्व परमात्मा की जानकारीवाले महापुरुषों ने देखा और सम्पूर्ण गुण गुणों में बरत रहे हैं, ऐसा मानकर वे गुण और कर्मों के कर्त्तापन में आसक्त नहीं होते। यहाँ तत्त्व का अर्थ परमतत्त्व परमात्मा है, न कि पाँच या पचीस तत्त्व जैसा कि लोग गणना करते हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण के शब्दों में तत्त्व एकमात्र परमात्मा है, अन्य कोई तत्त्व है ही नहीं। गुणों को पार करके परमतत्त्व परमात्मा में स्थित महापुरुष गुण के अनुसार कर्मों का विभाजन देख पाते हैं। तामसी गुण रहेगा तो उसका कार्य होगा- आलस्य, निद्रा, प्रमाद, कर्म में प्रवृत्त न होने का स्वभाव। राजसी गुण रहेंगे तो आराधना से पीछे न हटने का स्वभाव, शौर्य, स्वामिभाव से कर्म होगा और सात्त्विक गुण कार्यरत होने पर ध्यान, समाधि, अनुभवी उपलब्धि, धारावाहिक चिन्तन, सरलता स्वभाव में होगी। गुण परिवर्तनशील हैं। प्रत्यक्षदर्शी ज्ञानी ही देख पाता है कि गुणों के अनुरूप कर्मों का उत्कर्ष-अपकर्ष होता है। गुण अपना कार्य करा लेते हैं। #यथार्थ गीता #🙏गीता ज्ञान🛕 #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #❤️जीवन की सीख
यथार्थ गीता - f ٢[ 17&179 11 39 11 >' तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः  3াডেন ५५ गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते II हे महाबाहो ! गुण और कर्म के विभाग को तत्त्ववित् परमतत्त्व परमात्मा की ने देखा और जानकारीवाले सम्पूर्ण  महापुरुषों  aTuT गुण गुणों में बरत रहे हें ऐसा मानकर  और कर्मों के कर्त्तापन में आसक्त नहीं होते। यहाँ तत्त्व का अर्थ परमतत्त्व परमात्मा हे॰न कि पाँच या पचीस तत्त्व जेसा कि लोग गणना करते हें। योगेश्वर श्रीकृष्ण के शब्दों में तत्त्व एकमात्र परमात्मा है॰ अन्य कोई तत्त्व हैही नहीं। श्री श्री १००८ श्री स्वामी परमानन्दजी महाराज परमहंसजी ) जन्म : शुभ सम्वत् विक्रम १९६८ ( सन् १९११ ई० ) ज्येष्ठ शुक्ल ७, वि॰सं॰ २०२६, दिनांक २३/०५/१९६९ ई०  महाप्रयाण चित्रकूट  परमहंस आश्रम अनुसुइया , f ٢[ 17&179 11 39 11 >' तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः  3াডেন ५५ गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते II हे महाबाहो ! गुण और कर्म के विभाग को तत्त्ववित् परमतत्त्व परमात्मा की ने देखा और जानकारीवाले सम्पूर्ण  महापुरुषों  aTuT गुण गुणों में बरत रहे हें ऐसा मानकर  और कर्मों के कर्त्तापन में आसक्त नहीं होते। यहाँ तत्त्व का अर्थ परमतत्त्व परमात्मा हे॰न कि पाँच या पचीस तत्त्व जेसा कि लोग गणना करते हें। योगेश्वर श्रीकृष्ण के शब्दों में तत्त्व एकमात्र परमात्मा है॰ अन्य कोई तत्त्व हैही नहीं। श्री श्री १००८ श्री स्वामी परमानन्दजी महाराज परमहंसजी ) जन्म : शुभ सम्वत् विक्रम १९६८ ( सन् १९११ ई० ) ज्येष्ठ शुक्ल ७, वि॰सं॰ २०२६, दिनांक २३/०५/१९६९ ई०  महाप्रयाण चित्रकूट  परमहंस आश्रम अनुसुइया , - ShareChat

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