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।। ॐ ।। न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन। नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥ हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। पीछे कह आये हैं- उस महापुरुष का समस्त भूतों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। यहाँ कहते हैं- तीनों लोकों में मुझे कुछ भी कर्त्तव्य शेष नहीं है तथा किंचिन्मात्र प्राप्त होने योग्य वस्तु अप्राप्त नहीं है, तब भी मैं कर्म में भली प्रकार बरतता हूँ। क्यों?- #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख
यथार्थ गीता - ٧ ٥ ٧ || 3 | | परमात्मा को पानफा [লীক্ম্ভ সিম্ভ  mva-a नमे पार्थास्ति कर्तव्यं किञ्चन। गापरुप फढागत नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।। 777 VHxm ದu ச4-1#~14"7` अनसार फिगी हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। Ar4 ln44o4 पीछे कह आये हैं- उस महापुरुष का समस्त भूतों aulನ4 में कोई कर्त्तव्य नहीं है। यहाँ कहते हैं- तीनों लोकों में मुझे कुछ भी कर्त्तव्य शेष नहीं है तथा ।ययार्य गीता।। किंचिन्मात्र प्राप्त होने योग्य वस्तु अप्राप्त नहीं है, तब भी मैं कर्म में भली प्रकार बरतता हूँ। क्यों ? 3் ٧ ٥ ٧ || 3 | | परमात्मा को पानफा [লীক্ম্ভ সিম্ভ  mva-a नमे पार्थास्ति कर्तव्यं किञ्चन। गापरुप फढागत नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।। 777 VHxm ದu ச4-1#~14"7` अनसार फिगी हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। Ar4 ln44o4 पीछे कह आये हैं- उस महापुरुष का समस्त भूतों aulನ4 में कोई कर्त्तव्य नहीं है। यहाँ कहते हैं- तीनों लोकों में मुझे कुछ भी कर्त्तव्य शेष नहीं है तथा ।ययार्य गीता।। किंचिन्मात्र प्राप्त होने योग्य वस्तु अप्राप्त नहीं है, तब भी मैं कर्म में भली प्रकार बरतता हूँ। क्यों ? 3் - ShareChat

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