।। ॐ ।।
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥
हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। पीछे कह आये हैं- उस महापुरुष का समस्त भूतों में कोई कर्त्तव्य नहीं है। यहाँ कहते हैं- तीनों लोकों में मुझे कुछ भी कर्त्तव्य शेष नहीं है तथा किंचिन्मात्र प्राप्त होने योग्य वस्तु अप्राप्त नहीं है, तब भी मैं कर्म में भली प्रकार बरतता हूँ। क्यों?- #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख
