#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
Factful Debates YtChannelक्या श्राद्ध शास्त्रविरुद्ध साधना है?
आपने गीता 9.25 और मार्कण्डेय पुराण के पृष्ठों का हवाला देते हुए कहा कि श्राद्ध कर्म शास्त्रविरुद्ध है। आइए गीता 9.25 का शाब्दिक अर्थ देखें:
"यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।"
(भगवद गीता 9.25)
🔎 अर्थ:
जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देव लोक जाते हैं।
जो पितरों की पूजा करते हैं, वे पितृ लोक को प्राप्त होते हैं।
जो भूत-प्रेत आदि की पूजा करते हैं, वे नीच योनि को प्राप्त होते हैं।
परंतु जो मेरी (परमात्मा की) भक्ति करते हैं, वे मुझे प्राप्त होते हैं (अर्थात मोक्ष को प्राप्त होते हैं)।
📌 निष्कर्ष:
यह श्लोक स्पष्ट करता है कि जैसी साधना, वैसा फल।
श्राद्ध कर्म (पितर पूजा) का फल है — पितृ लोक।
मोक्ष प्राप्ति का मार्ग — केवल परमात्मा की भक्ति है, जैसा कि गीता के अनेक श्लोक (जैसे 18.66) में भी स्पष्ट है।
🔷 2. क्या पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध से पितरों की मुक्ति होती है?
आपने मार्कण्डेय पुराण, विष्णु पुराण और संत कवियों (कबीर, गरीबदास) के माध्यम से बताया कि श्राद्ध कर्म को वेदों में "अविद्या", यानी अज्ञान कहा गया है।
❗ अगर ये प्रमाण सही हैं (मार्कण्डेय पुराण, पेज 250-251), तो यह दर्शाता है कि:
वास्तविक उद्धार केवल ज्ञानयुक्त भक्ति से ही संभव है।
कर्मकांड (श्राद्ध, पिंडदान आदि) केवल प्रतीकात्मक या सांस्कृतिक अनुष्ठान हैं, मोक्ष का साधन नहीं।
🔷 3. संतों का मत — कबीर, गरीबदास, रामपाल जी
कबीर साहेब ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि मृत व्यक्ति की पूजा व्यर्थ है, जीवित माता-पिता की सेवा सर्वोत्तम धर्म है।
संत गरीबदास जी भी कहते हैं: "जीवित की सेवा करें, मृत का श्राद्ध व्यर्थ।"
संत रामपाल जी महाराज इसी तर्क को आगे बढ़ाते हैं कि शास्त्रअनुकूल भक्ति करने से ही पितरों का उद्धार और साधक का मोक्ष संभव है।
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