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santrampaljimaharaj - गीता ` बोला? 07 কা নান কিমন गीता अध्याय १८ श्लोक ४३ में गीता ज्ञान दाता ஈளி अध्याय १८ काश्लाक ४३ स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि शोर्यम तेजः भृतिः , दाक्ष्यम पुद़्े च अपि Tu दानम इश्चरभाव क्षात्राम कम स्तभावजम।।४३१| "సెశె # 7 ?FIHT आदि 2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। अनुवादः ( शीर्यम्) शूर नीरता तेजः) तेज (थृतिः ) शैर्य  (दाक्ष्यग) चनुरता (च) और (पद्े) सुद्ध्गे । अमि। शा सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी 5## शागना ( दानम्। दान देना ।च) ओर  (ara (ईंश्चरभाव ) पूर्ण परमात्मामं ` रूनचे स्वामिभाव ये सब के ने नहीं बोला| क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए ही ( क्षात्राम ) क्षांत्रेयके [रवभावजम्) रवाभाविक (कर्मी 4481 (43) कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं और युद्ध्गें भी न हिन्दीः शूर चारता तंज धर्य चनुरता " किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता| न उसकी भागना दान देना भार पूर्ण परमात्मामं रूचि स्वामिभाव ये सब के सब ही क्षीत्रियके रवाभाविक कर्म ह। राय श्रोता को ठीक जचेगी| वह उपहास का पात्र बनेगा | जी में प्रवेश करके बोला था। श्री कृष्ण प्रेतवत् यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल ) विष्णु भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री जी ही अवतार धार कर आए थे। जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download कीजिये व निःशुल्क निःशुल्क नामदीक्षा +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के लिये संपर्क सूत्र : Googk Play गीता ` बोला? 07 কা নান কিমন गीता अध्याय १८ श्लोक ४३ में गीता ज्ञान दाता ஈளி अध्याय १८ काश्लाक ४३ स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि शोर्यम तेजः भृतिः , दाक्ष्यम पुद़्े च अपि Tu दानम इश्चरभाव क्षात्राम कम स्तभावजम।।४३१| "సెశె # 7 ?FIHT आदि 2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। अनुवादः ( शीर्यम्) शूर नीरता तेजः) तेज (थृतिः ) शैर्य  (दाक्ष्यग) चनुरता (च) और (पद्े) सुद्ध्गे । अमि। शा सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी 5## शागना ( दानम्। दान देना ।च) ओर  (ara (ईंश्चरभाव ) पूर्ण परमात्मामं ` रूनचे स्वामिभाव ये सब के ने नहीं बोला| क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए ही ( क्षात्राम ) क्षांत्रेयके [रवभावजम्) रवाभाविक (कर्मी 4481 (43) कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं और युद्ध्गें भी न हिन्दीः शूर चारता तंज धर्य चनुरता " किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता| न उसकी भागना दान देना भार पूर्ण परमात्मामं रूचि स्वामिभाव ये सब के सब ही क्षीत्रियके रवाभाविक कर्म ह। राय श्रोता को ठीक जचेगी| वह उपहास का पात्र बनेगा | जी में प्रवेश करके बोला था। श्री कृष्ण प्रेतवत् यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल ) विष्णु भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री जी ही अवतार धार कर आए थे। जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download कीजिये व निःशुल्क निःशुल्क नामदीक्षा +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के लिये संपर्क सूत्र : Googk Play - ShareChat

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