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#👉 KABIR DASS KE DOHE ✍️ #📚कविता-कहानी संग्रह
👉 KABIR DASS KE DOHE ✍️ - ज्ञानी केहम गुरुहैं मूरख केहम दास। उसने उढाया डंडा, जोड़ ೯: लिए हाथ।| ज्ञानी को नो समझाया जा सकता है॰ लेकिन मूर्ख को नहीं ! मूर्खों से कभी नहीं उलझना चाहिए उन्हें तो दूर से ही नमस्कार करके चुपचाप आगे बढ जाना चाहिए। ज्ञानी केहम गुरुहैं मूरख केहम दास। उसने उढाया डंडा, जोड़ ೯: लिए हाथ।| ज्ञानी को नो समझाया जा सकता है॰ लेकिन मूर्ख को नहीं ! मूर्खों से कभी नहीं उलझना चाहिए उन्हें तो दूर से ही नमस्कार करके चुपचाप आगे बढ जाना चाहिए। - ShareChat

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