स्वर्ग की सच्चाई — देवताओं का महल या दिमाग की 'दिव्यता'? 🌥️✨ पुराणों और हिन्दू ग्रंथों में स्वर्ग (Svarga/अमरावती) को इंद्र के निवास, पारिजात-वृक्ष और मेरु पर्वत के ऊपर स्थित सुखलोक के रूप में बताया गया है; यह अवधारणा कई परंपराओं में अलग-अलग रूपों में मिलती है। अद्भुत उक्ति: "ना कोई ख्वाहिश मन में पैदा हो, ना कोई अफसोस..." (तथागत गौतम बुद्ध) — यह संकेत देता है कि आध्यात्मिक 'स्वर्ग' का मूल संदेश अक्सर मन की शांति और मोह-विरक्ति है, न कि केवल भौतिक आनंद। तर्कात्मक और वैज्ञानिक विश्लेषण: जिन अनुभवों को लोग 'स्वर्गीय दर्शन' कहते हैं (तेज़ रोशनी, पूर्वजों से मिलना, गहरी शांति), उनके लिए आज मजबूत न्यूरोबायोलॉजिकल मॉडल हैं — ऑक्सीजन की कमी, कार्बन-डाइऑक्साइड में वृद्धि, न्यूरोकेमिकल बदलाव और टेम्पोरल-लोब गतिविधि जैसे कारण NDEs की व्याख्या करते हैं; इसका मतलब यह नहीं कि अनुभव महत्वहीन हैं, पर इन्हें मस्तिष्क की स्थिति से समझना युक्तिसंगत है। साथ ही हालिया अध्ययनों में क्लिनिकल मृत्यु के करीब मस्तिष्क में अल्पकालिक उच्च-फ्रीक्वेंसी गतिविधि देखी गई है, जो सुझाती है कि 'स्वर्ग जैसा' अनुभव मृत-जागृत मस्तिष्क के अंतर्निहित न्यूरोलॉजी से जुड़ा हो सकता है — इसलिए धर्म का नैतिक संदेश (सदाचार, दान, परोपकार) सार्थक और सही माना जाना चाहिए, पर उसके भौतिक-स्थल के दावों को साबित करने के लिए वर्तमान में वैज्ञानिक साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं। आप अगली post किस पर बनी देखना चाहते हैं comment करें ✍️ #स्वर्ग #Svarga #देवलोक #आस्था #Science #NDE #धर्म #विज्ञान
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