ShareChat
click to see wallet page
जीवन अस्थायी और अप्रत्याशित है, इसे समझ पाना बेहद कठिन है। मन कुछ दिनों से विचलित था, इस रचना के माध्यम से मन के विचारों को अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है। आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है। 💐🙏 #हिंदी साहित्य #कविता #जीवन
हिंदी साहित्य - जीवन का कुछ भी पता नहीं, न जाने कब क्या हो जाए।। कभी छांव, बिना रुके, बढ़ते ये पांव। कभी धूप तो कभी सफर आसान लगे , कभी ये बोझिल हो जाए।। अनजाने ही इन राहों में, कौन मोड़ कब आ जाए। हंसता मुस्काता मधुवन , जाने कब पतझड़ हो जाए।। जब याद हमें तड़पाती है, आँखें बरबस भर आती हैं। कभी हंसी कभी रुदन, जो रहा जाग कब सो जाए।। धारा वायु जल अनल गगन, ये पंचभूत से बना बदन। कब पंच तत्व के यौगिक का, खुद में ही विसर्जन हो जाए।। कारवां न रुकता है कभी, यहां आते जाते हैं सभी। "योगी" साथी जो यहां अभी , कौन कहां कब खो जाए।। [ जीवन का कुछ भी पता नहीं, न जाने कब क्या हो जाए।। रघुवीर तिवारी "योगी" 0 YOGI Your uotein जीवन का कुछ भी पता नहीं, न जाने कब क्या हो जाए।। कभी छांव, बिना रुके, बढ़ते ये पांव। कभी धूप तो कभी सफर आसान लगे , कभी ये बोझिल हो जाए।। अनजाने ही इन राहों में, कौन मोड़ कब आ जाए। हंसता मुस्काता मधुवन , जाने कब पतझड़ हो जाए।। जब याद हमें तड़पाती है, आँखें बरबस भर आती हैं। कभी हंसी कभी रुदन, जो रहा जाग कब सो जाए।। धारा वायु जल अनल गगन, ये पंचभूत से बना बदन। कब पंच तत्व के यौगिक का, खुद में ही विसर्जन हो जाए।। कारवां न रुकता है कभी, यहां आते जाते हैं सभी। "योगी" साथी जो यहां अभी , कौन कहां कब खो जाए।। [ जीवन का कुछ भी पता नहीं, न जाने कब क्या हो जाए।। रघुवीर तिवारी "योगी" 0 YOGI Your uotein - ShareChat

More like this