कौमोदकी — विष्णु की वह प्रखर गदा जो शब्दशः 'मन को मोहित करने वाली' मानी जाती है; शिल्प-प्रमाणों के अनुसार इसकी मूर्तियाँ करीब 200 ई.पू. से मिलती हैं, यानी यह सिर्फ पौराणिक कल्पना नहीं बल्कि प्राचीन कला-इतिहास का जीवित संकेत है। महाभारत और पुराणों में इसे वरुण द्वारा कृष्ण/विष्णु को दी गई शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है और कभी-कभी यह गदादेवी के रूप में भी मानवीकृत होती है — परंतु धर्मग्रंथों का कथानक और पुरातात्त्विक साक्ष्य अलग-अलग तरह का प्रमाण देते हैं, इसलिए दोनों को अलग-अलग समझकर जोड़ना चाहिए। वैष्णव दर्शन में कौमोदकी को बौद्धिक शक्ति, ज्ञान-शक्ति और समय/काल का प्रतीक कहा गया है; तर्कसहित देखें तो मूसल-आकार के भारी सिर वाली यह गदा कम दूरी पर अधिक जड़ता (momentum) उत्पन्न कर मजबूरन विनाशकारी प्रभाव देती है — यानी इसका प्रतीकात्मक 'शक्ति/समय' अर्थ व्यवहारिक भौतिकी से भी संगत है। गरुड़पुराण की पुकार "Take up thy club Kaumodaki, O lotus-navelled deity" यही संदेश देती है कि धर्म, नियम और समय मिलकर न्याय सुनिश्चित करते हैं — इतिहास, शिल्प और विज्ञान जब एक साथ पढ़ें तो प्रतीक और भी स्पष्ट हो जाते हैं। जानना चाहेंगे और दुर्लभ मूर्तियाँ, शिल्पिक परिवर्तन और उनका तात्त्विक विश्लेषण? पढ़िए, सोचिए और शेयर कीजिए! 🕉️🗿📜⏳ #कौमोदकी #विष्णु #Gada #Iconography #IndianHistory #Mythology
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