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#एक रचना रोज़✍ #💔दर्द कविताएं #✍️ साहित्य एवं शायरी #📚कविता-कहानी संग्रह #📖 कविता और कोट्स✒️
एक रचना रोज़✍ - उठा द्रोपदा वस्त्रा सम्भाला अब गोविंद न आएंग उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो, अब गोविंदन आएंगे | I लगाओगी तुम, कवतक आस बिके हुए अखवारों से।  कैसी रक्षा मांग रही हो दुःशासन दरबारों से। स्वयं जो लज्जाहीन पडे़ हैं वेक्या लाज बचाएंगे | उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो, अब गोविंद नआएंगे 1 कल तक केवल अंधा राजा, अव गूगा-बहरा भी ह। होंठ सिल दिए हैजिनता के, कानों पर पहरा भी है। उठो दोपदी बस्त्र सम्भालो कहो ये अश्रु तुम्हारे तुम्ही  अब गोविंद नआएंगे | किसको क्या समझाएंगे? छोडो मेहंदी भुजा संभालो उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो  खुद ही अपना चीर बचा लो। अब गोविन्द न आयेंगे | द्यूत बिछाए बैठे शकुनि मस्तक सब बिक जाएंगे | उठा द्रोपदा वस्त्रा सम्भाला अब गोविंद न आएंग उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो, अब गोविंदन आएंगे | I लगाओगी तुम, कवतक आस बिके हुए अखवारों से।  कैसी रक्षा मांग रही हो दुःशासन दरबारों से। स्वयं जो लज्जाहीन पडे़ हैं वेक्या लाज बचाएंगे | उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो, अब गोविंद नआएंगे 1 कल तक केवल अंधा राजा, अव गूगा-बहरा भी ह। होंठ सिल दिए हैजिनता के, कानों पर पहरा भी है। उठो दोपदी बस्त्र सम्भालो कहो ये अश्रु तुम्हारे तुम्ही  अब गोविंद नआएंगे | किसको क्या समझाएंगे? छोडो मेहंदी भुजा संभालो उठो द्रोपदी वस्त्र सम्भालो  खुद ही अपना चीर बचा लो। अब गोविन्द न आयेंगे | द्यूत बिछाए बैठे शकुनि मस्तक सब बिक जाएंगे | - ShareChat

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