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शेर मिर्जा गालिब #✒ शायरी
✒ शायरी - शेर" हुस्न ग़मज़े की कशाकश से छूटा मेरे बाद बारे आराम से हैं एहले-्जफ़ा मेरे बाद भावार्थः जब तक मैं ज़िन्दा रहा, मुझे लिए हुस्न और तड़पाने के लुभाने अपने नाज़ ्नख़रों पर ध्यान देने के मैं नहीं में लगा रहा। अब जब रहा तो हुस्न को इस कशाकश से निजात मिल गई है। इस तरह मेरे न रहने पर मुझ पर जफ़ा करने वालों को तो आराम मिल गया। लिए ये शुक्र का मक़ाम है।॰ (সিত মালিন) Motivational Mdeos App Want शेर" हुस्न ग़मज़े की कशाकश से छूटा मेरे बाद बारे आराम से हैं एहले-्जफ़ा मेरे बाद भावार्थः जब तक मैं ज़िन्दा रहा, मुझे लिए हुस्न और तड़पाने के लुभाने अपने नाज़ ्नख़रों पर ध्यान देने के मैं नहीं में लगा रहा। अब जब रहा तो हुस्न को इस कशाकश से निजात मिल गई है। इस तरह मेरे न रहने पर मुझ पर जफ़ा करने वालों को तो आराम मिल गया। लिए ये शुक्र का मक़ाम है।॰ (সিত মালিন) Motivational Mdeos App Want - ShareChat

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