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पापांकुशा एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से तप के समान फल की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए। इस दिन सिर्फ फलाहार ही किया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व मन प्रफुल्लित रहता है। पापांकुशा एकादशी के महत्व को इसी बात से जाना जा सकता है कि महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्म राज युधिष्ठिर को इस व्रत की महिमा बताई थी। इस व्रत को करने से मनुष्य के अशुभ संस्कारों का भी नाश हो जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सूर्य यज्ञ और अश्वमेज्ञ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का नाम पाप रुपी हाथी को पुण्यरुपी व्रत के अंकुश से भेदने के कारण इस व्रत का नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा। इस दिन मौन रहकर भगवद् स्मरण और भगवान के कीर्तन-भजन करने का प्रावधान है। जिससे मनुष्य में सद्गुण आते हैं और उसका मन में निर्मलता आती है। #शुभ कामनाएँ 🙏
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