।। ॐ ।।
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति॥
जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर 'निर्ममः' - मैं और मेरे के भाव तथा अहंकार और स्पृहा से रहित हुआ बरतता है, वह उस परमशान्ति को प्राप्त होता है जिसके बाद कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता। #यथार्थ गीता #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख #🙏🏻आध्यात्मिकता😇
