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#sat saheb ji 📙 गीता ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा:- जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पवित्र गीता जी का ज्ञान सुनाते समय अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘ जरा सोचें कि श्री कृष्ण जी तो पहले से ही श्री अर्जुन जी के साथ थे। यदि पवित्र गीता जी के ज्ञान को श्री कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रवृत्त हुआ हूँ। - जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
sat saheb ji - गीता ddt? 07 का ज्ञान কিমন गीता अध्याय १८ श्लोक ४३ में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री अध्याय २८ का श्लोक ४३ शौर्यम् तेजः धृतिः दाक्ष्यम् युद्धे च अपि, अपलायनम् के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि दानम् ईश्वरभावः च क्षात्राम् कर्म स्वभावजम्। ।४३।|  "युद्ध से न भागना' आदि 2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं| अनुवादः ( शौर्यम् ) शूर॰वीरता ( तेजः ) तेज ( धृतिः ) धैर्य (दाक्ष्यम् ) चतुरता (च) और (युद्धे) युद्धमें (अपि) भी इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी (अपलायनम्) न भागना ( दानम्) दान देना (च) और (ईश्वरभावः ) पूर्ण परमात्मामंे रूचि स्वामिभाव ये सब के ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए ही (क्षात्राम) क्षत्रियके ( स्वभावजम) स्वाभाविक (कर्म) सच कर्म ्है। (४३) कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं हिन्दीः शूर॰वीरता तेज धैर्य चतुरता और युद्धमें भी न कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता| न उसकी কিৎ भागना दान देना और पूर्ण परमात्मामंे रूचि स्वामिभाव ये सब के सब ही क्षत्रियके स्वाभाविक कर्म हैं। राय श्रोता को ठीक जचेगी| वह उपहास का पात्र बनेगा | प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल ) ने भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे। जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download कीजिये व निःशुल्क निःशुल्क - नामदीक्षा लिये संपर्क सूत्र : GEi ON +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के Play Google गीता ddt? 07 का ज्ञान কিমন गीता अध्याय १८ श्लोक ४३ में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री अध्याय २८ का श्लोक ४३ शौर्यम् तेजः धृतिः दाक्ष्यम् युद्धे च अपि, अपलायनम् के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि दानम् ईश्वरभावः च क्षात्राम् कर्म स्वभावजम्। ।४३।|  "युद्ध से न भागना' आदि 2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं| अनुवादः ( शौर्यम् ) शूर॰वीरता ( तेजः ) तेज ( धृतिः ) धैर्य (दाक्ष्यम् ) चतुरता (च) और (युद्धे) युद्धमें (अपि) भी इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी (अपलायनम्) न भागना ( दानम्) दान देना (च) और (ईश्वरभावः ) पूर्ण परमात्मामंे रूचि स्वामिभाव ये सब के ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए ही (क्षात्राम) क्षत्रियके ( स्वभावजम) स्वाभाविक (कर्म) सच कर्म ्है। (४३) कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं हिन्दीः शूर॰वीरता तेज धैर्य चतुरता और युद्धमें भी न कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता| न उसकी কিৎ भागना दान देना और पूर्ण परमात्मामंे रूचि स्वामिभाव ये सब के सब ही क्षत्रियके स्वाभाविक कर्म हैं। राय श्रोता को ठीक जचेगी| वह उपहास का पात्र बनेगा | प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल ) ने भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे। जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download कीजिये व निःशुल्क निःशुल्क - नामदीक्षा लिये संपर्क सूत्र : GEi ON +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के Play Google - ShareChat

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