मैं एक किताबों की दुकान पर था। वहाँ बच्चों की किताबों का एक छोटा-सा सेक्शन था। अचानक मेरी नज़र लगभग सात साल की एक नन्ही बच्ची पर पड़ी। उसके हाथों में एक सुंदर-सी कहानी की किताब थी, जिस पर रंग-बिरंगे फूल बने हुए थे।
काउंटर पर खड़ा दुकानदार मुस्कुराकर बोला—
“बेटी, तुम्हारे पास जितने पैसे हैं, उनसे यह किताब नहीं खरीदी जा सकती।”
बच्ची ने थोड़ी देर खामोश रहकर मेरी ओर देखा और बोली—
“अंकल, क्या आप भी यही सोचते हैं कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?”
मैंने उसके सिक्के गिने और धीरे से कहा—
“हाँ बिटिया, यह सच है। तुम्हारे पैसे थोड़े कम हैं।”
उसकी आँखों में मायूसी तैर गई, पर उसने किताब को छोड़ने से इंकार कर दिया। मैं उसके पास गया और धीरे से पूछा—
“तुम यह किताब किसके लिए खरीदना चाहती हो?”
उसने मासूमियत से जवाब दिया—
“ये किताब मेरी छोटी बहन को बहुत पसंद थी। वो हमेशा मम्मी से कहती थी कि जब वो ठीक हो जाएगी, तो मम्मी उसे यह किताब पढ़कर सुनाएँगी। पर… अब वो मेरी बहन कभी घर नहीं लौटेगी। वो ऊपर सितारों के घर चली गई है। मम्मी कहती हैं कि स्वर्ग में अब दर्द नहीं होता।”
यह कहते हुए उसकी आवाज़ भर्रा गई। उसने किताब को और कसकर पकड़ लिया और बोली—
“मैं चाहती हूँ कि यह किताब मम्मी अपने साथ ले जाएँ और वहाँ जाकर मेरी बहन को पढ़कर सुनाएँ। तब मेरी बहन अकेली नहीं महसूस करेगी।”
मैं सन्न रह गया। मेरे अंदर जैसे कुछ टूट गया। मैंने कांपते हुए पूछा—
“लेकिन बेटी, तुम्हारी मम्मी तो तुम्हारे साथ हैं ना?”
उसने आँसुओं से भीगी मुस्कान के साथ कहा—
“नहीं अंकल… डॉक्टर अंकल कहते हैं कि मम्मी अब ज़्यादा दिन हमारे साथ नहीं रहेंगी। पापा कहते हैं कि वो बहन के पास जाने वाली हैं। मैंने पापा से कहा कि मम्मी थोड़ी देर रुक जाएँ, जब तक मैं यह किताब खरीदकर उन्हें ना दे दूँ।”
उसने अपनी छोटी-सी जेब से एक पुराना-सा फोटो निकाला। उसमें वही बच्ची खिलखिलाकर हंस रही थी। वह बोली—
“यह मेरी तस्वीर है। मैं चाहती हूँ कि मम्मी इसे भी अपने साथ ले जाएँ। ताकि मेरी बहन मुझे भूल न पाए।”
उसकी बातें सुनकर मेरी आँखें नम हो गईं। मैंने बिना बताए अपने बटुए से कुछ पैसे और मिला दिए और फिर से गिनती करने लगा। इस बार पैसे पूरे निकले। बच्ची खुशी से उछल पड़ी और बोली—
“वाह! भगवान ने मेरी दुआ सुन ली। मैंने कल रात उनसे प्रार्थना की थी कि मुझे इतने पैसे मिल जाएँ कि मैं किताब खरीद सकूँ। पर अब तो मेरे पास इतने हैं कि मैं एक सफेद फूल भी ले सकती हूँ। मम्मी को सफेद फूल बहुत पसंद हैं।”
मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा और वहाँ से निकल आया। पर उसके शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे।
कुछ दिनों पहले ही मैंने अख़बार में एक खबर पढ़ी थी। उसमें लिखा था कि एक लापरवाह ट्रक चालक ने शराब पीकर और फोन पर बात करते हुए तेज रफ्तार में एक गाड़ी को टक्कर मार दी। उस हादसे में गाड़ी में बैठी छोटी बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई थी और उसकी माँ गहरी कोमा में चली गई थी।
मेरे मन ने बेचैनी से पूछा—
क्या यह वही परिवार है?
दो दिन बाद, अख़बार में खबर आई कि उस महिला की भी मृत्यु हो गई। मैं खुद को रोक नहीं पाया और अंतिम दर्शन के लिए पहुँच गया।
शव-दाह गृह में उस महिला का चेहरा सफेद कपड़े में ढँका था। उसके हाथ में एक सफेद फूल रखा हुआ था। सीने पर वही किताब थी और किताब पर चिपकी हुई थी उस छोटी-सी बच्ची की तस्वीर।
मेरा कलेजा चीर गया। आँखों से आँसू अपने आप बह निकले। उस नन्ही बच्ची का माँ और बहन के लिए प्रेम इतना गहरा था कि शब्द उसे बयान नहीं कर सकते। पर एक नशे में धुत और मोबाइल में उलझा हुआ चालक उनकी पूरी दुनिया छीन ले गया।
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संदेश:
हम अक्सर सोचते हैं कि थोड़ी-सी शराब या थोड़ी देर फोन पर बात करने से क्या फर्क पड़ता है। लेकिन याद रखिए — यह “थोड़ी-सी लापरवाही” किसी मासूम की पूरी दुनिया उजाड़ सकती है। गाड़ी चलाते समय शराब और मोबाइल से दूर रहें। #emotional story #Baap or beti emotional story #📚कविता-कहानी संग्रह #📗प्रेरक पुस्तकें📘
