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#✍️ अनसुनी शायरी #✍️ साहित्य एवं शायरी
✍️ अनसुनी शायरी - "सोच" से भी॰, कई आगे हैं "तजुर्बा" मेरा. ! तुम्हारी मैं हादसे "्देख" कर नहीं , "झेल" कर बड़ा हुआ हूं॰ ! "सोच" से भी॰, कई आगे हैं "तजुर्बा" मेरा. ! तुम्हारी मैं हादसे "्देख" कर नहीं , "झेल" कर बड़ा हुआ हूं॰ ! - ShareChat

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