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#bachapan ki yade
bachapan ki yade - बचपन सच में जीवन का सबसे मासूम और बेमिसाल दौर होता है। उस समय न किसी डिग्री की चिंता होती थी, न करियर का बोझ, न ज़िम्मेदारियों का बोझ। मिट्टी के घरौंदों में ही महल बन जाते थे, खिलौनों के कोर्ट में ही हम डॉक्टर, वकील , जज और टीचर बन जाया करते थे। खेलकूद, ' शरारतें और मासूम हँसी से भरा दिन भर बस रहता था जीवन। न घर की टेंशन , न अपनी कोई टेंशन - सब कुछ कितना हल्का लगता था। बचपन की यही बेफ़िक्री ही असली अमीरी थी, जहाँ सपनों पर न कोई बंधन था और न हकीकत का डर। आज बड़े होकर समझ आता है कि बचपन सिर्फ़ उम्र का पड़ाव नहीं, बल्कि दिल का सुकून था  जहाँ छोटी सी चीज़ में भी पूरी : मिल जाती थी। काश , वो बेफ़िक्र दिन ख़ुशी ' दोबारा लौट आते। बचपन सच में जीवन का सबसे मासूम और बेमिसाल दौर होता है। उस समय न किसी डिग्री की चिंता होती थी, न करियर का बोझ, न ज़िम्मेदारियों का बोझ। मिट्टी के घरौंदों में ही महल बन जाते थे, खिलौनों के कोर्ट में ही हम डॉक्टर, वकील , जज और टीचर बन जाया करते थे। खेलकूद, ' शरारतें और मासूम हँसी से भरा दिन भर बस रहता था जीवन। न घर की टेंशन , न अपनी कोई टेंशन - सब कुछ कितना हल्का लगता था। बचपन की यही बेफ़िक्री ही असली अमीरी थी, जहाँ सपनों पर न कोई बंधन था और न हकीकत का डर। आज बड़े होकर समझ आता है कि बचपन सिर्फ़ उम्र का पड़ाव नहीं, बल्कि दिल का सुकून था  जहाँ छोटी सी चीज़ में भी पूरी : मिल जाती थी। काश , वो बेफ़िक्र दिन ख़ुशी ' दोबारा लौट आते। - ShareChat

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