जय भीम — एक ताकतवर नारा जो भीमराव अंबेडकर के समानता और न्याय के संदेश का प्रतीक है; इसका उपयोग अभिवादन और पहचान के रूप में दशकों से किया जाता रहा है और इसके सामाजिक-राजनीतिक मायने समूह पहचान और आन्दोलन की सामूहिक स्मृति बनाते हैं। मैंने इसे सिनेमा तक में देखा — 2021 की फिल्म ने भी आदिवासी-न्याय की कहानी को जन-स्तर पर जोरदार बनाया, जो इस नारे की व्यावहारिक चेतना को मजबूत करती है। तार्किक/वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो ऐसा नारा सोशल नेटवर्क प्रभाव और सांस्कृतिक संकेत (cultural signalling) बनाकर लोगों में समूह-संबंध और नैतिक दबाव पैदा करता है — इसलिए इसे सिर्फ शब्द न मान कर सामाजिक संरचना के बदलने वाली शक्ति के रूप में लेना चाहिए। मैंने बाबासाहेब के उस प्रखर वाक्य का सहारा लिया: “जीवन लंबा नहीं, महान होना चाहिए।” — यह सिद्धांत व्यक्तिगत गरिमा और सार्वजनिक न्याय के लिए सीधा प्रेरक मंत्र बनता है। अभी सोशल प्लेटफ़ॉर्म्स पर #jaybhim, #ambedkar, #जयभीम जैसे टैग्स जोर पकड़े हुए हैं; इन्हें रणनीतिक रूप से जोड़कर संदेश की पहुँच और एंगेजमेंट तेज़ होती है — इसलिए पोस्ट में स्पष्ट, भावनात्मक और तथ्य-समर्थित बात रखें ताकि व्यूज़ और संवाद दोनों बढ़ें। 🔥✊📜🙏 @Jai bhima @jai bhim @jai bhim @Deepak jai bhim @🙏 jai Bhim 🙏 #jai bhim #jai bhim #🚗🧗🏻भारत भ्रमण व सफर प्रेमी🚂⛰ #श्री लक्ष्मी नारायण नमो नमः 🙏 #viral

