#गीताजी_का_ज्ञान_किसने_बोला
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गीता सार
अध्याय 11 का श्लोक 32
कालः, अस्मि, लोकक्षयकृत्, प्रवृद्धः, लोकान्, समाहर्तुम्, इह, प्रवृत्तः । ऋते, अपि, त्वाम्, न, भविष्यन्ति, सर्वे, ये, अवस्थिताः, प्रत्यनीकेषु, योधाः ।।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा अनुवादित ।
लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ
काल हूँ।
इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिये प्रकट हुआ हूँ। इसलिये जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, तेरे युद्ध न करने से भी इन सबका नाश हो जायेगा

