🕉️ आत्म जागृति अनुष्ठान : जब दो शरीर, दो मन, एक आत्मा बन जाते हैं
एडवोकेट प्रहलाद राय व्यास
पूर्व सदस्य, स्थायी लोक अदालत, भीलवाड़ा | ओशो जीवन शैली से प्रेरित
मन और बुद्धि जब एक ही रिदम (ताल) में प्रवाहित होते हैं, तब आत्म-जागृति का अनुष्ठान संभव होता है।
ध्यान ही वह पद्धति है, जिसमें शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा एक ही लय में बहने लगते हैं।
जब मन ऊपर की ओर उठने लगता है — तब आत्म तत्व की पहचान शुरू होती है।
नियमित ध्यान से मन स्थिर होता है, बुद्धि तीक्ष्ण होती है, विवेक और तर्क क्षमता बढ़ती है,
और आत्म तत्व के जागरण से आत्म शक्ति का विस्तार होता है।
इतिहास गवाह है — अनेक साधकों ने आत्म-जागृति के अनगिनत प्रयोग किए हैं।
कुछ ने तंत्र, यंत्र, मंत्र के माध्यम से, तो कुछ ने शरीर को ही अनुष्ठान का औजार बनाकर,
मन और बुद्धि को एक ही धारा में प्रवाहित किया है।
सभी का उद्देश्य एक ही रहा — आत्मिक चेतना के माध्यम से आत्म तत्व को पहचानना।
एडवोकेट प्रहलाद राय व्यास का कहना है —
> "अपनी आत्मा का दिया आपको ही जलाना पड़ेगा।
ध्यान कोई एक नियम नहीं — यह तो आपकी अपनी प्रकृति के अनुरूप चलने वाली पद्धति है।"
आध्यात्मिकता का सार यही है — अद्वैत का स्वीकार, जहाँ न द्वंद है, न भेद।
वहीं से आत्म साक्षात्कार की यात्रा शुरू होती है।
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