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प्रभु श्री राम के सागर से विनय की बात सुन कर रावण अपनी राजसभा में हँसते हुए गुप्तचरों से कहता है कि मूर्खो तुम क्या मिथ्या बड़ाई पर बड़ाई करे जा रहे हो, मैंने शत्रु तपस्वीयों का बुद्धि , बल आदि को भली भांति पहचान लिया है , वो स्वभाव से डरपोक हैं बस अपनी वाणी में कठोरता लिए हैं, वो अभी बालक हैं व उनकी बालकबुद्धि का ही ये निर्णय है कि सागर से बालहठ कर रहे हैं ,भला सागर भी किसी की बालहठ से मार्ग देता होगा, तुम व्यर्थ ही उनकी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हो। जय श्री राम ##सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩
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