. पितृपक्ष में पितरों को जल देना .
पितृ तर्पण के लिए दक्षिणमुखी होकर जल और तिल से अपना गोत्र और पितरों का नाम लेकर तीन तीन अंजलियाँ दें। मंत्र इस प्रकार है :---
अमुक गोत्रः अस्मत्पिता/ अस्मत्पितामह/ अस्मद् प्रपितामह/ अस्मद् वृद्ध प्रपितामह, अमुक शर्मा तिलोदकं जलं तस्मै स्वधा नमः , तस्मै स्वधा नमः , तस्मै स्वधा नमः ।
अमुक गोत्रः की जगह अपना गोत्र का नाम और अपने पितरों का नाम लेकर उपर लिखे मंत्र से तीन तीन अंजलियाँ जल दें। हर पितरों को अलग अलग जल दें। पिता, पितामह (दादा), प्रपितामह (परदादा) और इनसे ऊपर की पीढ़ी सभी वृद्ध प्रपितामह में आते हैं। यज्ञोपवीतधारी अपशव्य होकर जल दें अर्थात् जनेऊ को उल्टा करके यानि बायें कंधे से जनेऊ को दायें कंधे पर करलें और तब जलांजलि दें। जल देने के बाद जनेऊ को सीधा करलें।
परहेज :---पितृ पक्ष में मांस ,मछली, मदिरा, प्याज, लहसुन, सलजम, गाजर, मसुर दाल, बैगन, नेनुआं, और मैथुन वर्जित है। इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
इस वर्ष पितृपक्ष 8 सितम्बर 2025 को प्रारंभ हो रहा है और 21 सितम्बर 2025 को समाप्त हो रहा है।
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
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