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।। ॐ ।। अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥ कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्। तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥ सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं। 'अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्।' (तैत्तरीयोपनिषद्, भृगुबल्ली २) -अन्न परमात्मा ही है। उस ब्रह्मपीयूष को ही उद्देश्य बनाकर प्राणी यज्ञ की ओर अग्रसर होता है। अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है। बादलों से होनेवाली वर्षा नहीं अपितु कृपावृष्टि। पूर्वसंचित यज्ञ-कर्म ही इस जन्म में, जहाँ से साधन छूटा था, वहीं से इष्टकृपा के रूप में बरस पड़ता है। आज की आराधना कल कृपा के रूप में मिलेगी। इसीलिये वृष्टि यज्ञ से होती है। स्वाहा बोलने और तिल-जौ जलाने से ही वृष्टि होती तो विश्व की अधिकांश मरुभूमि ऊसर क्यों रहती, उर्वरा बन जाती। यहाँ कृपावृष्टि यज्ञ की देन है। यह यज्ञ कर्मों से ही उत्पन्न होनेवाला है। कर्म से यज्ञ पूर्ण होता है। इस कर्म को वेद से उत्पन्न हुआ जान। वेद ब्रह्मस्थित महापुरुषों की वाणी है। जो तत्त्व विदित नहीं है उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति का नाम वेद है, न कि कुछ श्लोक-संग्रह। #यथार्थ गीता #🙏गीता ज्ञान🛕 #🧘सदगुरु जी🙏 #महादेव #❤️जीवन की सीख
यथार्थ गीता - IlಖೊnewjaiiHill ரிall Ilaeref I3 Il ५२०० 8 अन्ादवन्ति पर्जन्पादननसम्भवः|  পুনানি  यज्ञाद्धवति पर्जन्यौ यज्ञः कर्मसमुद्धवः।l  कर्ग ब्रह्माद्व विद्धि बह्माक्षरसमद्वगा  नस्मान्सर्वगन बह्मय निन्यं यज्ञे प्निष्ठितम्।। पाणी अन्न से ऊपन्न होते ह। 'अन्न नह्मेति सम्पूर्ण  (ततरीयोपनिपद भृगुवल्ली २) - अत्त  व्यजानाना সা্ম মল্ল কী জ1া ব ম রম্নত্ীনা কা মর জ্ী বননি নৃষ্টি  से हानी हा बादनों सेहोनवानी वर्मा नही अपिन कृपावृषि। पूर्वसंचित पज्ञ कर्म ही इस जन्म मैे॰ जहॉ से सापन ऐटा था , बही से इरकृपा के रूप मे वरस पडना  ह। आज की आरापना कल कपा के रूप मे मिलेगी। इमीलिय वृष्टि यज्ञ मे हाना हा म्वाहा बोनने आर तिलजो जलाने सेही वष्टि हाती नो विश्वकी अषिकांश ५२०० नरुभूगि ऊसर क्पो रहनी, रवरा तन जाती। यहा  कपावरि पज्ञ की देन ह। यह पज्त कमो से ही उत्पन होनैवाला ह। कर्म से यज्ञ पूर्ण होता ह। লণী নলন সনহল কনান श्रीमदमगवदगीता की शाश्वत व्याख्या ೧೬ಣ೮ ಮ೩ನಿದ IlಖೊnewjaiiHill ரிall Ilaeref I3 Il ५२०० 8 अन्ादवन्ति पर्जन्पादननसम्भवः|  পুনানি  यज्ञाद्धवति पर्जन्यौ यज्ञः कर्मसमुद्धवः।l  कर्ग ब्रह्माद्व विद्धि बह्माक्षरसमद्वगा  नस्मान्सर्वगन बह्मय निन्यं यज्ञे प्निष्ठितम्।। पाणी अन्न से ऊपन्न होते ह। 'अन्न नह्मेति सम्पूर्ण  (ततरीयोपनिपद भृगुवल्ली २) - अत्त  व्यजानाना সা্ম মল্ল কী জ1া ব ম রম্নত্ীনা কা মর জ্ী বননি নৃষ্টি  से हानी हा बादनों सेहोनवानी वर्मा नही अपिन कृपावृषि। पूर्वसंचित पज्ञ कर्म ही इस जन्म मैे॰ जहॉ से सापन ऐटा था , बही से इरकृपा के रूप मे वरस पडना  ह। आज की आरापना कल कपा के रूप मे मिलेगी। इमीलिय वृष्टि यज्ञ मे हाना हा म्वाहा बोनने आर तिलजो जलाने सेही वष्टि हाती नो विश्वकी अषिकांश ५२०० नरुभूगि ऊसर क्पो रहनी, रवरा तन जाती। यहा  कपावरि पज्ञ की देन ह। यह पज्त कमो से ही उत्पन होनैवाला ह। कर्म से यज्ञ पूर्ण होता ह। লণী নলন সনহল কনান श्रीमदमगवदगीता की शाश्वत व्याख्या ೧೬ಣ೮ ಮ೩ನಿದ - ShareChat

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