#भोजपुरी भोजपुरी कविता _ जाड़ा गरीबन के।
लेई लुगरी गुदरी चिथडी ओढ़ी बाकी जाड़ हठी जावत नाही।
गरीबन के जाड़ा बड़ा उत्पाती बहरी भीतरी कछु सुहावत नाही।
माघ पूस के ओस गिरे फाटल मड़ई टूटल खटिया के भिंजावे।
पोरा पर बोरा ओढ़ी पौढ़ी के सुतल मनई ओंघाई आवत नाही।
भिनसारे गोइंठी भूसी बोरसी जराई ठिठुरत कापंत तापत है।
ठंडी खूब बयार चले ओढ़ी ओढ़ना पोढना जाडा भागत नाही।
बटोरी बकरी छगरी मुर्गा लेई गोदी गदेली गदेला माई सोई रही।
खेत पड़े बोझा धान जागी रात बितावे बाबा तनी सोवत नाही ।
गढही गढ़हा पोखरा पोखरी मारी अछरी मछरी आहार जुटाय रहे।
भूखल पेट ऐंठल अंतरी बाकी भूख प्यास गरीबन मिटावत नाही।
कहे भारती हे भाग विधाता दिनन के दाता जाड़ा काहे सतावे।
एक त मार गरीबी दूजे बैरी जाड़ा जान केहू तनी बचावत नाही।
श्याम कुंवर भारती(राजभर)
बोकारो,झारखंड
मॉब.9955509286 #✍प्रेमचंद की कहानियां #💔दर्द भरी कहानियां #📚कविता-कहानी संग्रह #🇮🇳मेरा भारत, मेरी शान

