ShareChat
click to see wallet page
#satnam waheguru
satnam waheguru - Hukmnama 24/11/25 धन धन श्री गुरु रामदास जी 770 सूही महला ३ II जुग चारे धन जे भवै बिनु सतिगुर निहचलु राजु सदा हरि केरा सोहागु न होई राम Il तिसु बिनु अवरु न तिसु बिनु अवरु न कोई राम Il कोई सदा सचु सोई गुरमुखि जाणिआ ೯ಾ]' Il 8 पिर मेलावा होआ मनु मानिआ सतिगुरु যুৎসনী | मिलिआ ता हरि पाइआ बिनु हरि नावै मुकति न होई कामणि कंतै रावे मनि मानिऐ सुखु होई II Il নানব ? I अर्थः हे भाई! (युग चाहे कोई भी हो) गुरु (की शरण पडे़) बिना पति प्रभु का मिलाप नहीं होता, जीव-स्त्री चाहे चारों युगों में भटकती फिरे। उस का हुक्म अटल है प्रभुन्पति (कि गुरु के द्वारा ही उसका मिलाप प्राप्त होता है)। उसके बिना कोई और उसकी बराबरी का नहीं (जो इस हुक्म को बिना उस जैसा और सके)। हे भाई! जिस प्रभु के बदलवा कोई नहीं। वह प्रभु स्वयं ही सदा कायम रहने वाला है। गुरु के सन्मुख रहने वाली जीव-स्त्री उस एक के साथ गहरी सांझ बनाती है। जब गुरु की मति पर चल के जीवनस्त्री का मन (परमात्म की याद में) रीझ जाता है, तब जीव॰स्त्री का प्रभु-्पति से मिलाप हो जाता है। हे भाई!़ जब गुरु मिलता है तब ही प्रभु की प्राप्ति होती है (गुरु ही) प्रभु का नाम जीव-स्त्री के हृदय में बसाता है, और परमात्मा के नाम के बिना (माया के बंधनो से) खलासी नहीं होती। हे नानक!  अगर मन प्रभु की याद में रीझ जाए॰ तो जीवस्त्री प्रभु के मिलाप का आनंद भोगती है, उसके हृदय में आनंद पैदा हुआ रहता है।१ | Hukmnama 24/11/25 धन धन श्री गुरु रामदास जी 770 सूही महला ३ II जुग चारे धन जे भवै बिनु सतिगुर निहचलु राजु सदा हरि केरा सोहागु न होई राम Il तिसु बिनु अवरु न तिसु बिनु अवरु न कोई राम Il कोई सदा सचु सोई गुरमुखि जाणिआ ೯ಾ]' Il 8 पिर मेलावा होआ मनु मानिआ सतिगुरु যুৎসনী | मिलिआ ता हरि पाइआ बिनु हरि नावै मुकति न होई कामणि कंतै रावे मनि मानिऐ सुखु होई II Il নানব ? I अर्थः हे भाई! (युग चाहे कोई भी हो) गुरु (की शरण पडे़) बिना पति प्रभु का मिलाप नहीं होता, जीव-स्त्री चाहे चारों युगों में भटकती फिरे। उस का हुक्म अटल है प्रभुन्पति (कि गुरु के द्वारा ही उसका मिलाप प्राप्त होता है)। उसके बिना कोई और उसकी बराबरी का नहीं (जो इस हुक्म को बिना उस जैसा और सके)। हे भाई! जिस प्रभु के बदलवा कोई नहीं। वह प्रभु स्वयं ही सदा कायम रहने वाला है। गुरु के सन्मुख रहने वाली जीव-स्त्री उस एक के साथ गहरी सांझ बनाती है। जब गुरु की मति पर चल के जीवनस्त्री का मन (परमात्म की याद में) रीझ जाता है, तब जीव॰स्त्री का प्रभु-्पति से मिलाप हो जाता है। हे भाई!़ जब गुरु मिलता है तब ही प्रभु की प्राप्ति होती है (गुरु ही) प्रभु का नाम जीव-स्त्री के हृदय में बसाता है, और परमात्मा के नाम के बिना (माया के बंधनो से) खलासी नहीं होती। हे नानक!  अगर मन प्रभु की याद में रीझ जाए॰ तो जीवस्त्री प्रभु के मिलाप का आनंद भोगती है, उसके हृदय में आनंद पैदा हुआ रहता है।१ | - ShareChat

More like this