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#गीता जयंती पर असली गीता सार गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि अर्जुन पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को जानने वाले तत्वदर्शी संतों के पास जा कर उनसे विनम्रता से पूर्ण परमात्मा का भक्ति मार्ग प्राप्त कर, मैं उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग नहीं जानता। संत रामपाल जी महाराज ही वह तत्वदर्शी संत हैं। 🎉गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में बताया है कि वह तत्वदर्शी संत होगा जो संसार रूपी वृृक्ष का पूर्ण विवरण बता देगा कि मूल तो पूर्ण परमात्मा है, तना अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म है, डार ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष है तथा शाखा तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) है तथा पात रूप संसार अर्थात् सर्व ब्रह्मण्ड़ों का विवरण बताएगा वह तत्वदर्शी संत है। संत रामपाल जी महाराज जी ने ही यह तत्वज्ञान बताया है। 🎉 गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में गीता ज्ञान दाता ने संकेत किया है कि इस सच्चिदानंद घन ब्रह्म अर्थात परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति का ऊँ तत् सत् यह तीन मंत्र का जाप है, इसी का जाप करने का निर्देश है। 🎉 गीताजी अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा गया है कि अविनाशी तो उस परमात्मा को जानो जिस का नाश करने में कोई समर्थ नहीं है। 🎉 गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं उनको ना तो कोई सुख होता है, ना कोई सिद्धि प्राप्त होती है तथा ना ही उनकी गति अर्थात मोक्ष होता है। 🎉 गीता अध्याय 18 श्लोक 62 हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। इस श्लोक में गीता ज्ञान दाता अपने से अन्य सर्व शक्तिमान पूर्ण परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है, उसकी शरण में जाने से ही पूर्ण शांति व सनातन परम धाम (सत्यलोक/अविनाशी लोक) की प्राप्ति होगी। 🎉 गीता अध्याय 15 श्लोक 17 सर्वोत्तम परमात्मा तो कोई और है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सभी का पालन-पोषण करते हैं और उसे अमर परम ईश्वर कहते हैं। 🎉गीता अध्याय 15 श्लोक 16 इस संसार में, दो प्रकार के भगवान हैं, नाशवान और अविनाशी और सभी प्राणियों के शरीर नाशवान और आत्मा अविनाशी कही जाती है। वास्तव में, अविनाशी भगवान इन दोनों से अन्य है जो अमर परमात्मा, परमेश्वर (सर्वोच्च ईश्वर), सतपुरुष के रूप में जाने जाते हैं। 🎉 गीता अध्याय 18, श्लोक 66 गीता ज्ञान दाता काल कहता है, " मेरी सभी धार्मिक पूजाओं को मुझमें त्याग कर, तू केवल उस एक पूर्ण परमात्मा की शरण में जा। मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा; तू शोक मत कर। 🎉गीता अध्याय 18, श्लोक 62 “हे अर्जुन! तू सब प्रकार से उस परम ईश्वर की ही शरण में जा। उस परमपिता परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति और शाश्वत स्थान- सतलोक (स्थान-धाम) को प्राप्त होगा”। ’सब प्रकार से’ का अर्थ कोई अन्य पूजा नहीं करना बल्कि मन-कर्म-वचन से केवल एक भगवान में विश्वास रखना है। 🎉 गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं उनको ना तो कोई सुख होता है ना कोई सिद्धि प्राप्त होती है तथा ना ही उनकी गति अर्थात मोक्ष होता है। 🎉गीताजी अध्याय 18 श्लोक 62 प्रमाणित करता है कि पूर्ण परमात्मा गीता ज्ञानदाता से भिन्न है। हे भारत! तू संपूर्ण भाव से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सदा रहने वाले अविनाशी स्थान को अर्थात् सतलोक को प्राप्त होगा।” यही प्रमाण गीता जी अध्याय 18 श्लोक 66 में भी दिया गया है। 🎉पवित्र गीता जी अध्याय 9 श्लोक 25 में साफ लिखा है कि भूतों को पूजोगे तो भूतों की योनियों में जाओगे और पितर पूजोगे तो पितर योनि में जाओगे। फिर क्यों आप श्राद्ध कर्म, पिंड दान आदि करते हो? ये मोक्ष मार्ग के विपरीत क्रियाएं हैं। 🎉गीताजी अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान देने वाला भगवान स्वयं को जन्म मरण के अंतर्गत बता रहा है, फिर जन्म मरण से परे अविनाशी व पूजनीय पूर्ण परमात्मा कौन है? जानने के लिए पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा। #दिल को भा जाए #RIP Ratan Tata sir, इस पुरी आगे बढ़ने की सोच रखने वाले कम्युनिटी का एक सड़क आज खत्म हो गया। भा #मोनू भा #सु प्र भा त
दिल को भा जाए - a13 गीता अध्याय १८ श्लोक ६२ अध्याय १८ का श्लोक ६२ हे भारत! तूसब प्रकार सेउस परमेश्वर की की ही शरण मेंजा उस परमात्मा की कृपा तम एव शरणम गच्छ सर्वभावेन भारत  নন্সমাভান এমসূ থালিম থনমূ সাদযমি . से ही तू परम शान्ति को तथा सदा रहने शाश्वतम्। ।६२१  वाले सतलोक को प्राप्त होगा। अनुवादः (भारत) हे भारतः तू (सर्वभावेन) सब प्रकारसे (तम्) उस परमेश्वरकी (एव) ही (शरणम्) शरणमे  संत रामपाल जी महाराज जी से जा। ।तत्ासादात उस परमात्माकी कपा सेही (गच्छ a13 गीता अध्याय १८ श्लोक ६२ अध्याय १८ का श्लोक ६२ हे भारत! तूसब प्रकार सेउस परमेश्वर की की ही शरण मेंजा उस परमात्मा की कृपा तम एव शरणम गच्छ सर्वभावेन भारत  নন্সমাভান এমসূ থালিম থনমূ সাদযমি . से ही तू परम शान्ति को तथा सदा रहने शाश्वतम्। ।६२१  वाले सतलोक को प्राप्त होगा। अनुवादः (भारत) हे भारतः तू (सर्वभावेन) सब प्रकारसे (तम्) उस परमेश्वरकी (एव) ही (शरणम्) शरणमे  संत रामपाल जी महाराज जी से जा। ।तत्ासादात उस परमात्माकी कपा सेही (गच्छ - ShareChat

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