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santrampal ji maharaj - प्रभु ऋषि मुनींद्र जी हनुमान जी श्रीमद् आनन्द रामायण सारकाण्ड, सर्ग ९, श्लोक २८३ २९८ हनुमान जी सीता माता की अंगूठी लेकर आकाश मार्ग से वापास लौट रहे थे, तब जव उत्तर दिशा की ओर कुछ दूर आगे जाकर नीचे उतरे , तो वहीं पर उन्होंने एक 'श्री मुनि कुछ गर्व से मारूति ने कहा- हे मुनीश्वर ! मैं श्रीराम का काम  को विराजमान देखा। तब करके आ रहा हूँ। यहां मैं पानी पीने की इच्छा से आया हूँ। मुझे कोई जलाशय बताइये।  तब मुनि ने उन्हें तर्जनी अंगुल से जलाशय बता दिया। हनुमान अंगूठी  चूड़ामणि  নথা मे एक पत्र मुनि जी के पास रखकर उस तालाब में जल पीने गये। इतने बंदर ने आकर राम की मुद्रिका को मुनि जी के पास रखके कमंडल में डाल दिया। उधर से हनुमान जी  मुनि जी से पूछा कि मुद्रिका कहां भी आ पहुंचे।  तथा पत्र के विषय में उन्होने चूड़ामणि गयी? मुनि ने भौहों के संकेत से कमंडल दिखाया। जब हनुमान ने कमंडल में देखा तो उसमें श्रीराम की हजारों मुद्रिकाएं दिखाई दो। तब हनुमान ने आश्चर्यचकित होकर मुनि से पूछा  कि अंगूठियां कहां से आई। हे मुनि श्रेष्ठ ! आप यह भी कहिये कि इनमें से मेरी मुद्रिका कोननसी हे? मुनि ने उत्तर दिया कि॰ जब २ श्रीराम की आशा से हनुमान शंका में जाकर सीता का पता लगाता है ओर अंगूठी लेकर आता है, तबन्तब बंदर, उन्हें इस  कमंडल में डाल देते हें। वे ही ये सब हैं। इनमें से तुम अपनी अंगूठी खोज लो। मुनि जी  के इस वाक्य को सुनकर हनुमान का गर्व खर्व हो गया। तब उन्होंने कहा- हे मुनि ! यहां कितने रामचंद्र जी आये है? मुनि ने कहा- कमंडल में से अंगूठीयां निकालकर गिन लो।  हनुमान कमंडल से बारंबार अंगूठीयां बाहर निकालने लगे , परंतु अंत नहीं मिला। तब फिर से उन्हें कमंडल में भर दिया और मुनि को नमस्कार करके क्षणभर के लिए वे मन में विचार करने लगे कि॰ ओह! पहले मेरे जैसे सैकड़ों हनुमान जाकर सीता की खबर लेकर आये हें तो मेरी कोनसी गिनती हे। यह निश्चय करके वीर मारुति घमंड को त्याग कर दक्षिण मार्ग में जहां अंगद आदि वानर बैठे थे, वहां गये। प्रभु ऋषि मुनींद्र जी हनुमान जी श्रीमद् आनन्द रामायण सारकाण्ड, सर्ग ९, श्लोक २८३ २९८ हनुमान जी सीता माता की अंगूठी लेकर आकाश मार्ग से वापास लौट रहे थे, तब जव उत्तर दिशा की ओर कुछ दूर आगे जाकर नीचे उतरे , तो वहीं पर उन्होंने एक 'श्री मुनि कुछ गर्व से मारूति ने कहा- हे मुनीश्वर ! मैं श्रीराम का काम  को विराजमान देखा। तब करके आ रहा हूँ। यहां मैं पानी पीने की इच्छा से आया हूँ। मुझे कोई जलाशय बताइये।  तब मुनि ने उन्हें तर्जनी अंगुल से जलाशय बता दिया। हनुमान अंगूठी  चूड़ामणि  নথা मे एक पत्र मुनि जी के पास रखकर उस तालाब में जल पीने गये। इतने बंदर ने आकर राम की मुद्रिका को मुनि जी के पास रखके कमंडल में डाल दिया। उधर से हनुमान जी  मुनि जी से पूछा कि मुद्रिका कहां भी आ पहुंचे।  तथा पत्र के विषय में उन्होने चूड़ामणि गयी? मुनि ने भौहों के संकेत से कमंडल दिखाया। जब हनुमान ने कमंडल में देखा तो उसमें श्रीराम की हजारों मुद्रिकाएं दिखाई दो। तब हनुमान ने आश्चर्यचकित होकर मुनि से पूछा  कि अंगूठियां कहां से आई। हे मुनि श्रेष्ठ ! आप यह भी कहिये कि इनमें से मेरी मुद्रिका कोननसी हे? मुनि ने उत्तर दिया कि॰ जब २ श्रीराम की आशा से हनुमान शंका में जाकर सीता का पता लगाता है ओर अंगूठी लेकर आता है, तबन्तब बंदर, उन्हें इस  कमंडल में डाल देते हें। वे ही ये सब हैं। इनमें से तुम अपनी अंगूठी खोज लो। मुनि जी  के इस वाक्य को सुनकर हनुमान का गर्व खर्व हो गया। तब उन्होंने कहा- हे मुनि ! यहां कितने रामचंद्र जी आये है? मुनि ने कहा- कमंडल में से अंगूठीयां निकालकर गिन लो।  हनुमान कमंडल से बारंबार अंगूठीयां बाहर निकालने लगे , परंतु अंत नहीं मिला। तब फिर से उन्हें कमंडल में भर दिया और मुनि को नमस्कार करके क्षणभर के लिए वे मन में विचार करने लगे कि॰ ओह! पहले मेरे जैसे सैकड़ों हनुमान जाकर सीता की खबर लेकर आये हें तो मेरी कोनसी गिनती हे। यह निश्चय करके वीर मारुति घमंड को त्याग कर दक्षिण मार्ग में जहां अंगद आदि वानर बैठे थे, वहां गये। - ShareChat

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