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#✍️ साहित्य एवं शायरी
✍️ साहित्य एवं शायरी - पुतले का दहन दशहरा पर्व कुण्डलियाँ छंद दहन, हर्षित है करके হসান| पुतले का गया, कहता है नादान।। अब रावण HRI कहता है नादान, इसी भ्रम में वह जीता। को निज हाथ, जलाते सदियों बीता। | पुतले ಫ೯ राम कवि राय, जोश हिय में वह भरके। मना रहा है पर्व, का करके।। তুনল दहन का नहीं, है इतना आसान। रावण TT जब तक के अपने हृदय, भरा हुआ अभिमान। | भरा हुआ अभिमान, यही रावण कहलाता। पर क्रोध, व्यर्थ में क्यों दिखलाता। | फिर पुतले कहे राम अभिमान, हमें है निज ಹT ೯TI గTTT 3ITHTT q S& ?IqJ का मरना। | पुतले का दहन दशहरा पर्व कुण्डलियाँ छंद दहन, हर्षित है करके হসান| पुतले का गया, कहता है नादान।। अब रावण HRI कहता है नादान, इसी भ्रम में वह जीता। को निज हाथ, जलाते सदियों बीता। | पुतले ಫ೯ राम कवि राय, जोश हिय में वह भरके। मना रहा है पर्व, का करके।। তুনল दहन का नहीं, है इतना आसान। रावण TT जब तक के अपने हृदय, भरा हुआ अभिमान। | भरा हुआ अभिमान, यही रावण कहलाता। पर क्रोध, व्यर्थ में क्यों दिखलाता। | फिर पुतले कहे राम अभिमान, हमें है निज ಹT ೯TI గTTT 3ITHTT q S& ?IqJ का मरना। | - ShareChat

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