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#यहाँ से भी चलें।
यहाँ से भी चलें। - चलें , अब तो यहाँ से भी चलें | उठ गए हिलते हुए रंगीन कपड़े মুঙনী (अपाहिज हैं छत मुँडेरे ) एक स्लेटी सशंकित आवाज़ आने लगी सहसा दूर से। चलें , अब तो पहाड़ी उस पार बूढ़े सूर्य बनकर ढलें | पेड़, मंदिर, पंछियों के रूप। कौन जाने कहाँ रखकर जा छिपी वह सोनियातन करामाती धूप। चलें , अब तो बन्द कमरों में सुलगती लकड़ियों -से जलें। चलें , अब तो यहाँ से भी चलें | उठ गए हिलते हुए रंगीन कपड़े মুঙনী (अपाहिज हैं छत मुँडेरे ) एक स्लेटी सशंकित आवाज़ आने लगी सहसा दूर से। चलें , अब तो पहाड़ी उस पार बूढ़े सूर्य बनकर ढलें | पेड़, मंदिर, पंछियों के रूप। कौन जाने कहाँ रखकर जा छिपी वह सोनियातन करामाती धूप। चलें , अब तो बन्द कमरों में सुलगती लकड़ियों -से जलें। - ShareChat

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