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।। ॐ ।। ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः। श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥ अर्जुन ! जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित होकर, श्रद्धाभाव समर्पण से संयुक्त हुए सदा मेरे इस मत के अनुसार बरतते हैं कि 'युद्ध कर', वे पुरुष भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं। योगेश्वर का यह आश्वासन किसी हिन्दू, मुसलमान या ईसाई के लिए नहीं अपितु मानवमात्र के लिए है। उनका मत है कि युद्ध कर! इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह उपदेश युद्धवालों के लिये है। अर्जुन के समक्ष सौभाग्य से विश्वयुद्ध की संरचना थी, आपके सामने तो कोई युद्ध नहीं है, आप गीता के पीछे क्यों पड़े हैं; क्योंकि कर्मों से छूटने का उपाय तो युद्ध करनेवालों के लिये है? किन्तु ऐसा कुछ नहीं है। वस्तुतः यह अन्तर्देश अविद्या का, धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र का संघर्ष है। आप ज्यों-ज्यों ध्यान में चित्त का निरोध करेंगे तो विजातीय प्रवृत्तियाँ बाधा के रूप में प्रत्यक्ष होती हैं, भयंकर आक्रमण करती हैं। उनका शमन करते हुए चित्त का निरोध करते जाना ही युद्ध है। #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख #🧘सदगुरु जी🙏
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