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क्या कहूं, किसे कहूं ! #कविता #हिंदी साहित्य
कविता - "क्या कहूं, किससे कहूं.. ! वक्त बहता जा रहा है। अश्रु सूखा जा रहा है। इस भावना के ज्वार में। @ನ[ @ಾ೯್ ! अब नाव मैं, पतवार मैं। 0 किखाख क्हू॰॰॰ तन्हाइयों से क्यों डरूं..। l द्वार सारे बंद हो जब। हर तरफ धुंध हो जब। नजर आता न रास्ता है। मंजिल से भी न वास्ता है। क्यों दीप बन खुद न जलूं..।। ये टुकड़ों में टूटी सांस है। किसी से न कोई आस है। अब मौन है। यह अधर भी सोचो हमराह पथ में कौन है। '्योगी' क्यों न यह मंथन करूँ... ।। क्या कहूं ,   किससे कहूं.. ! रघुवीर तिवारी '्योगी' Yogi "क्या कहूं, किससे कहूं.. ! वक्त बहता जा रहा है। अश्रु सूखा जा रहा है। इस भावना के ज्वार में। @ನ[ @ಾ೯್ ! अब नाव मैं, पतवार मैं। 0 किखाख क्हू॰॰॰ तन्हाइयों से क्यों डरूं..। l द्वार सारे बंद हो जब। हर तरफ धुंध हो जब। नजर आता न रास्ता है। मंजिल से भी न वास्ता है। क्यों दीप बन खुद न जलूं..।। ये टुकड़ों में टूटी सांस है। किसी से न कोई आस है। अब मौन है। यह अधर भी सोचो हमराह पथ में कौन है। '्योगी' क्यों न यह मंथन करूँ... ।। क्या कहूं ,   किससे कहूं.. ! रघुवीर तिवारी '्योगी' Yogi - ShareChat

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