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#☝अनमोल ज्ञान #🕉️सनातन धर्म🚩 🌿🌼 *अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे* 🌼🌿 सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना । सोइ सरबग्य रामु भगवाना। रोना, माया का धर्म है। सगुण परमात्मा की लीला में माया का धर्म भले ही दृष्टिगोचर हो परन्तु वे माया-रहित शुद्ध ब्रह्म हैं। ईश्वर ही हैं। सतीजी को आश्चर्य हुआ। परमात्मा श्रीरामचन्द्र के अनेक स्वरूपों का वर्णन ग्रन्थों में हुआ है। परमात्मा सगुण-साकार हैं और परमात्मा निर्गुण-निराकार भी हैं। सगुण- साकार परमात्मा के साथ प्रेम होता है। जो निर्गुण-निराकार हैं उन ईश्वर के साथ प्रेम होता नहीं। ज्ञानी पुरुष ब्रह्म-चिंतन करते हैं, परन्तु घंटे-आधा घंटे बाद उनको थकान होने लगती है। निराकार निष्क्रिय ब्रह्म का चिंतन करते हुए आनन्द तो आता है परन्तु पीछे मन भटक जाता है। जो परमात्मा हिलता नहीं, चलता नहीं, बोलता नहीं, उस प्रभु का ध्यान करते हुए मन थक जाता है। वैष्णवजन निष्क्रिय ब्रह्म का चिंतन करते नहीं, परन्तु लीला-विशिष्ट ब्रह्म का ध्यान करते हैं। वैष्णवों का ब्रह्म तो बोलता है, चलता है, हँसता है, खेलता है, नाचता है, प्रेम करता है। घूम-घूम करते हुए कन्हैया जिस प्रकार चलता है ऐसा चलना किसी को भी आता नहीं, वैष्णवजन अष्टयाम सेवा का चिन्तन करते हैं। सुबह कन्हैया उठते हैं, यशोदा माँ कन्हैया का सुन्दर श्रृंगार करती हैं, माताजी लाल को माखन-मिश्री आरोगवाती हैं, कन्हैया गायों को लेकर आते हैं, गायों की सेवा करते हैं। प्रातः काल से रात्रि तक जब तक रासलीला होती है, तब तक एक-एक लीला का वैष्णव लोग अत्यन्त प्रेम से चिंतन करते हैं। सगुण- साकार परमात्मा के साथ प्रेम होता है; निर्गुण-निराकार ईश्वर का बुद्धि में अनुभव होता है। निराकार ब्रह्म बस 'है' केवल इतना ही है, परन्तु इन निराकार ब्रह्म का अपने को अधिक उपयोग नहीं है। लकड़ी में अग्नि होती है। सभी जानते हैं कि लकड़ी के एक-एक कण में अग्नि है, परन्तु जिस समय अत्यन्त ठंड लग रही हो और उस समय कोई लकड़ी का स्पर्श करे तो लकड़ी में रहनेवाली अग्नि क्या गर्मी देती है? लकड़ी में अग्नि है, मात्र इतना ही जाना जाता है, लकड़ी के अणु-परमाणु में अग्नि है, दूध के एक-एक कण में माखन है, परन्तु वह निराकार रूप में है। निराकार ईश्वर सर्वव्यापक है, परन्तु किसी को दिखाई देता नहीं। बुद्धि से ही उसका अनुभव होता है। सगुण के साथ प्रेम करो और निर्गुण-निराकार ईश्वर सबमें विराजमान है, ऐसा सर्वकाल में अनुभव करो। परमात्मा सभी में है, ऐसा हर समय जो समझता है उसको पाप करने की जगह मिलती नहीं। जो लोग ऐसा मानते हैं कि भगवान् वैकुण्ठ में और मन्दिर में ही बैठे हैं, उनके हाथों से पाप हो जाता है। तुम जहाँ हो, वहीं ईश्वर है। जगत् में ऐसा कोई स्थान नहीं, जहाँ भगवान् न विराजते हों।परमात्मा सर्वव्यापक हैं। राजा राजमहल में रहता है परन्तु राजा की सत्ता उसके राज्य में सभी जगह होती है, राज्य के अणु-परमाणु में भी व्याप्त रहती है। सत्ता का कोई आकार नहीं होता, कोई रंग नहीं होता। सत्ता काली, सफेद या पीली नहीं होती। राजा भले ही राजमहल में रहे, परन्तु सत्तारूप से राजा सबमें होता है। राजा में सत्ता न रहे तो राजा का अस्तित्व ही न रहे। कल्पना करो कि एक अतिशय श्रीमंत की मोटर सड़क पर जा रही है। श्रीमंत को बहुत ही महत्त्व का काम है इसलिये मोटर बहुत वेग से चली जा रही है। फिर भी मार्ग पर वाहन के नियमों का पालन कराने के लिये खड़ा हुआ सिपाही यदि हाथ ऊँचा करे तो श्रीमंत को भी मोटर खड़ी रखनी पड़ेगी। यह सम्मान सिपाही के लिये नहीं, राज्य-सत्ता के लिये होता है। श्रीमान् के मन में कदाचित् घमण्ड होवे कि ऐसे अनेक सिपाहियों को तो मैं घर में नौकर रख सकता है। तो बात तो यह सत्य है, परन्तु उस राज-सिपाही में राजसत्ता है। सत्ता का कोई रंग नहीं, सत्ता का कोई आकार नहीं, परन्तु सत्ता है। यह बात सत्य है। निर्गुण-निराकार ईश्वर सभी के अन्दर सर्वकाल में विराजमान है। निर्गुण और सगुण, भगवान् के इन दो स्वरूपों का वर्णन ग्रन्थों में आता है। वेद में अनेक स्थानों पर ऐसा वर्णन आता है कि ईश्वर का कोई आकार नहीं, ईश्वर निराकार है, तेजोमय है। ईश्वर का आकार नहीं, इसका अर्थ यह है कि ईश्वर का कोई एक आकार नहीं है। अरे! शंख, चक्र, गदा, पद्म हाथ में हो, उसी को ईश्वर कहते हैं क्या? हाथ में त्रिशूल धारण करनेवाला ईश्वर नहीं है क्या? धनुष, बाण हाथ में हो, वह ईश्वर नहीं है क्या? ईश्वर का कोई एक स्वरूप निश्चित नहीं किया गया है कि अमुक स्वरूप में जो दिखाई देता है, वही ईश्वर कहलाएगा। जगत् में जितने रूप दिखाई देते हैं, वे तत्त्व से परमात्मा के ही स्वरूप हैं। अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे। आकार भले ही भिन्न दिखाई दे, परन्तु उन सब प्रकार के आकारों में ईश्वर-तत्त्व एक ही है। माला में फूल अनेक हैं, अनेक प्रकार के हैं, परन्तु धागा एक ही है। गीताजी में भगवान् ने आज्ञा की है- मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥ आकार भिन्न-भिन्न हैं परन्तु सबमें रहने वाला ईश्वर तत्त्व एक ही है। गाय काली हो, धौरी हो अथवा लाल हो, उसका दूध सफेद ही होता है। रूप-रंग अथवा आकार का महत्त्व नहीं होता; आकार में रहनेवाले परमात्म-तत्त्व का महत्त्व है। नरसिंह मेहता ने कहा है- अखिल ब्रह्माण्ड में एक तू श्रीहरि, जूजवे रूपे अनन्त भासे॥ वेद तो एय वदे, श्रुति-स्मृति शौखदे, कनक कुण्डल विशे भेद न होये। घाट घडिया पछी नाम रूप जूजवाँ, अंते तो हेमनुं हेम होय॥ सुवर्ण के आभूषण अनेक होते हैं, अनेक प्रकार के आकार के होते हैं परन्तुइन सब आभूषणों में एक ही सुवर्ण होता है। तुम बाजार में चन्द्रहार लेकर जाओ तो चन्द्रहार की कीमत मिलती है क्या? नहीं! कीमत सोने की ही मिलती है। सोना यदि दस तोला होगा तो दस तोले सोने का ही मूल्य मिलेगा। चन्द्रहार की कीमत मिलेगी नहीं। आकार की कीमत नहीं। कीमत सुवर्ण की है। एक महात्मा के पास सुवर्ण के गणपति और सुवर्ण का चूहा था। शरीर वृद्ध हुआ। काल समीप आया जानकर महात्मा ने विचार किया कि मेरे जाने के बाद ये शिष्य लोग मूर्ति के लिए झगड़ा करेंगे। इसलिये उचित यही है कि मूर्ति को बेच दिया जाय और उस मूल्य से भंडारा करा दिया जाय। महात्मा मूर्ति बेचने गये। गणपति की मूर्ति दस तोले की बैठी और मूषक की ग्यारह तोले की। स्वर्णकार ने कहा-गणपति का मूल्य चार हजार रूपया और मूषक का मूल्य चार हजार चार सौ है। महात्मा ने कहा-अरे गणपति तो मालिक हैं। उनका मूल्य कम क्यों देते हो? सुवर्णकार ने कहा- मैं तो सुवर्ण की कीमत देता हूँ, मालिक की नहीं। आकार की कीमत अधिक नहीं होती। परमात्मा निराकार है, ऐसा जहाँ वर्णन किया है, वहाँ उसका अर्थ यही है कि ईश्वर का कोई एक आकार निश्चित नहीं है। जगत् में जितने आकार दिखाई देते हैं, वे सभी तत्त्वदृ‌ष्टि से भगवान् के ही आकार हैं। सुवर्णाज्जायमानस्य सुवर्णत्वं च शाश्वतम्। ब्रह्मणो जायमानस्य ब्रह्मत्वं च तथा भवेत्॥ सुवर्ण में से बने हुए आभूषणों में सुवर्ण-तत्त्व जिस प्रकार एक ही है, उसी प्रकार ईश्वर से उत्पन्न हुए इस सृष्टि के सब जीवों में ही क्या, सब पदार्थों में ईश्वर-तत्त्व एक ही है। ईश्वर सर्वाकार है। ईश्वर का कोई एक आकार निश्चित नहीं। इसलिए भगवान् को निराकार कहते हैं। भगवान विश्वनाथ और माँ भवानी की जय 🙏🌷 आनन्दरूप सीयावर रामचंद्र की जय 🙏🌷 श्री हनुमान की जय 🙏🌷 - परम पूज्य संत श्री रामचंद्र केशव डोंग्रेजी महाराज के दिव्य प्रवचनों से 🙏
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