।। ॐ ।।
अर्जुन उवाच
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥
जनों पर दया करनेवाले जनार्दन ! यदि निष्काम कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञानयोग आपको श्रेष्ठ मान्य है, तो हे केशव ! आप मुझे भयंकर कर्मयोग में क्यों लगाते हैं? निष्काम कर्मयोग में अर्जुन को भयंकरता दिखायी पड़ी; क्योंकि इसमें कर्म करने में ही अधिकार है, फल में कभी नहीं। कर्म करने में अश्रद्धा भी न हो और निरन्तर समर्पण के साथ योग पर दृष्टि रखते हुए कर्म में लगा रह। जबकि ज्ञानमार्ग में हारोगे तो देवत्व है, जीतने पर महामहिम स्थिति है। अपनी लाभ-हानि स्वयं देखते हुए आगे बढ़ना है। इस प्रकार अर्जुन को निष्काम कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञानमार्ग सरल प्रतीत हुआ। इसलिये उसने निवेदन किया- #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🙏गीता ज्ञान🛕 #🧘सदगुरु जी🙏 #महादेव
