।। ॐ ।।
अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति ।
सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ॥
दूसरे नियमित आहार करनेवाले प्राण को प्राण में ही हवन करते हैं। 'पूज्य महाराज जी' कहा करते थे कि, "योगी का आहार दृढ़, आसन दृढ़ और निद्रा दृढ़ होनी चाहिये।” आहार-विहार पर नियन्त्रण बहुत आवश्यक है। ऐसे अनेक योगी प्राण को प्राण में ही हवन कर देते हैं अर्थात् श्वास लेने पर ही ध्यान केन्द्रित रखते हैं, प्रश्वास पर ध्यान नहीं देते। साँस आयी तो सुना 'ओम्', पुनः साँस आयी तो 'ओम्' सुनते रहें। इस प्रकार यज्ञों द्वारा नष्ट पापवाले ये सभी पुरुष यज्ञ के जानकार हैं। इन निर्दिष्ट विधियों में से यदि कहीं से भी करते हैं तो वे सभी यज्ञ के ज्ञाता हैं। #❤️जीवन की सीख #🙏गीता ज्ञान🛕 #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #यथार्थ गीता

